Sunday 31 May 2009

काशी साईं आज का विचार : 10

"दूसरो के दुःख हरने का हर पल यथाशक्ति प्रयत्न करना ही मानव जीवन का धर्म है।"

साईं ने कहा है : भाग - 53

साईं ने कहा है, कि.....
"अपने भक्तो को मै मृत्यु के मुख से बचा लाता हूँ।"

Saturday 30 May 2009

11 Sayings of Shirdi Sai Baba (In English) :

11 Sayings of Shirdi Sai Baba (श्री शिरडी साई बाबा ग्यारह वचन) :

1 - Whoever puts his feet on Shirdi soil, his sufferings would come to an end....

2-The wretched and miserable would rise into plenty of joy and happiness, as soon as they climb steps of my samadhi....

3 - I shall be ever active and vigorous even after leaving this earthly body...

4 - My tomb shall bless and speak to the needs of my devotees...

5 - I shall be active and vigorous even from the tomb....

6 - My mortal remains would speak from the tomb...

7 - I am ever living to help and guide all who come to me, who surrender to me and who seek refuge in me.....

8 - If you look to me, I look to you.......

9 - If you cast your burden on me, I shall surely bear it.....

10 - If you seek my advice and help, it shall be given to you at once.....

11 - There shall be no want in the house of my devotees....

काशी साईं आज का विचार : 9

"सत्य, अहिंसा और प्रेम में अखंड बल है।"

साईं ने कहा है : भाग - 52

साईं ने कहा है, कि......
"अनन्य भाव से मेरी शरण में आकर निरंतर मेरा स्मरण और ध्यान करने वाले को मैं मुक्ति प्रदान करता हूँ।"

Friday 29 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 51

साईं ने कहा है, कि...
"जो कोई मेरी लीलाओ का कीर्तन करेगा,
मैं उसकी चारो ओर से रक्षा करूँगा।"

काशी साईं आज का विचार : 8

"प्रेम जीव को पुरुषार्थ तथा परमार्थ की ओर ले जाता है।"

Thursday 28 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 50

साईं ने कहा है, कि....

"जो प्रेमपूर्वक मेरा नाम स्मरण करेगा,

मैं उसकी समस्त इछाये पूर्ण करूँगा ।"


और

मैं मिट्टी के कण-कण में हूँ,

मैं जीवन के क्षण-क्षण में हूँ!

झांके हैं नभ से तारे जो,

उन तारों की टिम-टिम में हूँ!

मैं ही तो हवाओं का वेग हूँ,

मैं ही तो घटाओं का मेघ हूँ!

अहसास करो तुम खुद में ही,

मैं तो हर इक के मन में हूँ!

क्यों फिरता है दर-दर पर तू?

मुझको पाने की चाहत में?

क्यों जलता है पल-पल में तू?

मैं तेरी हर हलचल में हूँ!

कर पलभर तो तू याद मुझे,

ना रहने दूंगा उदास तुझे!

आऊंगा जब पुकारोगे मुझे,

में जन-जन की सुमिरन में हूँ!

मैं मिट्टी के कण-कण में हूँ,

मैं जीवन के क्षण-क्षण में हूँ...

काशी साईं आज का विचार : 7

"अहं, राग-द्वेष तथा तनत्व भाव ही मोह और अज्ञान के मूल कारण है।"

Wednesday 27 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 49

साईं ने कहा है, कि.....
"गरीबो और बेसहारों की सेवा करो।"

काशी साईं आज का विचार : 6

"कर्मो को छोड़ देने से कर्म से संग का त्याग नही होता।"

Tuesday 26 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 48

साईं ने कहा है, कि.....
"मैं पूर्व कई जन्मो से तुम्हारे साथ था,
और आगे भी तुम्हारे साथ रहूँगा
हम बार बार मिलते रहेंगे।"

काशी साईं आज का विचार : 5

"साधक का अभ्यास ही यह है, कि वह दूसरे को दोषी नही मानता।"

Monday 25 May 2009

साईं तेरा नाम है मेरा जीवन

साईं मेरा जीवन है तेरे नाम,

मोहब्बत का रास्ता तुने दिखाया ।

श्रद्धा सबुरी से जीना सिखाया,

साई को मेरा जीवन समर्पित है ।

जब गाता हूँ मैं साई का नाम,

लगता है जीवन साईं का जीवन

काशी साईं आज का विचार : 4

"अनुकूलता में समचित रहना आसान है, प्रतिकूलता में समचित रहना योग है।"

माँ का महत्व

१- आसमान ने कहा.... "माँ एक इन्द्रधनुष है, जिसमें सभी रंग समाये हुए हैं।"
२- शायर ने कहा.... "माँ एक ऐसी गजल है, जो सबके दिल में उतरती चली जाती है।"
३- माली ने कहा.... "माँ एक दिलकश फूल है, जो पूरे गुलशन को मह्काता है।"
४- औलाद ने कहा.... "माँ ममता का अनमोल खजाना है, जो हर दिल पर कुर्बान है।"
५- वाल्मीकि जी ने कहा.... "माता और मातर भूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।"
६- वेद व्यास जी ने कहा.... "माता के समान कोई गुरु नही है।"
७- पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कहा.... "माँ वह हस्ती है, जिसके क़दमों के नीचे जन्नत है।"

संस्कारवान व्यक्ति सबको प्रिय

सभ्य समाज में रहने वाले व्यक्ति की पहचान के लिए उसका संस्कारवान होना आवश्यक है। अच्छे संस्कार ही पर्याय है सभ्यता का। यदि हम देखने में सुंदर हैं, लेकिन संस्कारों से शून्य अर्थात दरिद्र है तो हमारी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।
संस्कारों के माध्यम से आदर्शो के पुंज एकत्र किए जा सकते हैं। सज्जनता हमें अपने आचरण से दीर्घकाल तक जीवित रखती है। संस्कारवान व्यक्ति जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करने की साम‌र्थ्य रखता है। इसके साथ ही हर व्यक्ति भी सुस्कारित मानव को ही पसंद करते है नैतिकता का सीधा संबंध आत्मबल से है जो संस्कारों से ही निर्मित होती है। हमारे गुण, कर्म, स्वभाव में घुले-मिले कुसंस्कारों को हमारे द्वारा अर्जित संस्कारों की शक्ति ही उन्हें अप्रभावित करती है। आत्मा परमात्मा का ही स्वरूप है, जो हमारे शरीर रूपी मंदिर में सदैव विराजमान रहते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने आचरण से किसी भी तरह आत्मा को कलुषित न होने दें। हमसे जुडी हुई हमारी सामाजिक जिम्मेदारियां भी है जिनका निर्वहन भी हम अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के माध्यम से करने में तभी समर्थ होंगे जब हम सुसंस्कारिता के क्षेत्र में संपन्न होंगे। संस्कार हमारे आत्मबल का निर्माण करते हैं। शालीनता, सज्जनता, सहृदयता, उदारता, दयालुता जैसे सद्गुण सुसंस्कारिता के लक्षण हैं। आधुनिकता के इस युग में संस्कारों की मजबूत लकीर धूमिल होती जा रही है, हमें इसे बचाना होगा। इस दिशा में विवेकशील लोगों को आगे आना होगा। यह मानवता, नैतिकता और समाज के विकास के लिए अति आवश्यकता है। सामाजिक संतुलन सुसंस्कारिता के आधार पर ही कायम रखा जा सकता है अन्यथा सर्वत्र अराजकता का ही बोल बाला हो जाएगा, जो एक सभ्य समाज के लिए असहनीय बात होगी, क्योंकि हर कोई सुख, शांति, प्रगति और सम्मान चाहता है जो संस्कारों के द्वारा ही संभव है। संस्कार हमें नैतिकता की शिक्षा देते हैं। मानवता इसी से पोषित होती है। चरित्र निर्माण के लिए संस्कारों की पृष्ठभूमि निर्मित करनी होती है। रहन-सहन का तरीका, जीवन जीने की कला, लोकव्यवहार आदि सदाचार से संबंधित बातें है जो हमें जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करती है। समाज में भाई चारा और आत्मीयता का विस्तार भी नैतिकता और मानवता के माध्यम से ही संभव है। यदि हम सुखी होंगे तो हमारे पडोसी भी सुखी होंगे इस भावना को यदि हम अपने परिवार से ही विकसित करेंगे तो निश्चय ही आत्मीयता का विस्तार होगा।

Sunday 24 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 47

साईं ने कहा है, कि.....
"मैं निराकार और सर्वव्यापी हूँ।"

काशी साईं आज का विचार : 3

"श्रद्धा के बिना शास्त्र को जीवन में उतार लेना असंभव है।"

Saturday 23 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 46

साईं ने कहा है, कि......
"मेरी शरण में आने वाला मुझ में मिल जाता है,
जैसे की नदी समुद्र में मिल जाती है।"

काशी साईं आज का विचार : 2

"मोह जीव की निर्णय शक्ति को क्षीण कर देता है।"

Friday 22 May 2009

पूज्य दादा जी "प० शारदा प्रसाद दुबे जी" की २५वी पुण्य-तिथि पर विशेष :

पूज्य दादा जी "प० शारदा प्रसाद दुबे जी" की २५वी पुण्य-तिथि पर विशेष :

"बाबा कहना था कि चातुर्य त्याग कर सदैव साई साई यही स्मरण करो ।

इस प्रकार आचरण करने से समस्त बन्धन छूट जायेंगे और तुम्हें मुक्ति प्राप्त हो जायेगी ।"

श्री सदगुरु साईं नाथ जी हमारे दादा जी के आत्मा को शान्ति प्रदान करना और हम सभी को ज्ञान दीजीये कि हम सब आपके बताये मार्ग पर चले ।

परब्रह्म के अवतार साईं बाबा

"'तुम कहीं भी रहो, कुछ भी करो पर याद रखो कि तुम जो भी करते हो वह मुझे मालूम है। मैँ प्रत्येक के हृदय में हूँ और सबका आन्तरिक शासक हूँ। चराचर सृष्टि मुझसे ही आच्छादित है। मैं नियामक, नियंत्रक और दृश्य सृष्टि का सूत्रधार हूँ। मैं माता हूँ, समस्त प्राणियों का उद्गम हूँ। मैं सत्व, रज, तम तीनों गुणों का समत्व हूँ, इन्द्रयों तथा बुद्धि का संचालक हूँ और सृष्टि का रचयिता, पालक और संहारक हूँ। जो मुझमें अपना ध्यान केन्द्रित करेगा उसे कोई भी, कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचावेगा किन्तु जो मुझे भूलेगा, माया उसे आघात पहुँचावेगी। सभी जीव जन्तु तथा समस्त दृश्यमान सचराचर जगत मेरा ही शरीर और रूप है।' ठीक ऐसी ही घोषणा भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता के दसवें अध्याय में "विभूति योग" के अन्तर्गत की है।
परब्रह्म के अवतार साईं बाबा की यही स्तुति कर हम कृतार्थ हो जावें कि -
"ब्रह्मा दक्षः कुबेरो यम वरुनमरुद्रह्नि महेन्द्र रुद्राः
शैला जद्यः समुद्रा ग्रहगण मनुजा दैत्य गन्धर्व नागाः।
द्वीपा नक्षत्र तारा रवि वसु मुनयो व्योम भूरश्विनौ च
संलीना यस्य वपुषि स भगवान् पातु यो विश्वरूपः॥"

अर्थात्

"जिनके शरीर में ब्रह्मा, दक्ष, कुबेर, यम, वरुण, वायु, अग्नि, चन्द्र, इन्द्र, शिव, पर्वत, नदी, समुद्र, ग्रह, मनुष्य, दैत्य, गन्धर्व, नाग द्वीप, नक्षत्र, तारे, सूर्य, वसु, मुनि, आकाश, पृथ्वी और अश्वनीकुमार आदि सभी लीन हैं, वे विश्वरूप भगवान हमारा कल्याण करे।

काशी साईं आज का विचार : १

"अंहकार, दंभ, दर्प आदि विकार ही मोह का कीचड़ है।"

["आज 22-05-2009 को हमारे पूज्य दादा जी "प० शारदा प्रसाद दुबे जी" की २५वी पुण्य-तिथि है, और आज से ही यह Post उनको समर्पित करते हुए शुरू किया जा रहा है, अगर पसन्दः आए तो अपने सुझाव व विचार Comment box में दीजीए।" ""धन्यवाद्""]

साईं ने कहा है : भाग - 45

साईं ने कहा है, कि......
"जो मुझसे प्रेम करता है,वह सदा मेरा दर्शन करता है।"

Thursday 21 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 44

साईं ने कहा है, कि....
"अपने सभी कार्य ईमानदारी से करो।"

Wednesday 20 May 2009

Tuesday 19 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 42

साईं ने कहा है, कि.....
"दक्षिणा (दान) भेट करते समय मन में कोई पछतावा नही होना चाहिए,
नही तो ऐसे दान का कोई अर्थ नही रह जाता। तहे दिल से दान देना चाहिए।"

Monday 18 May 2009

सुख-दुख मनुष्य के कर्मो का फल

भक्तों के जीवन में विपत्तियां आती रहती हैं, क्योंकि भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते रहते हैं। इसलिए मनुष्य को विपत्तियों में हार न मानते हुए अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए।

जीवन का दु:ख उस व्यक्ति के कर्म की उत्पत्ति होती है, लेकिन जो विपत्ति उसे भगवान की ओर ले जाए, वह ईश्वर की उसके लिए परीक्षा होती है। जिस प्रकार भक्त प्रहलाद के जीवन में ऐसी कई विपत्तियां आई थीं, लेकिन उन्होंने किसी भी विपत्ति में भय को महसूस नहीं किया, क्योंकि उन्हें तो संसार की हर वस्तु में भगवान के साक्षात दर्शन होते थे। उन्होंने ज्ञानी भक्त को परिभाषित किया और कहा कि ज्ञानी भक्त वह होता है, जिसे हर ओर ईश्वर ही ईश्वर दिखाई दे।

भगवान का अवतार भक्त की रक्षा के लिए होता है। भक्त की रक्षा का अभिप्राय उनके प्राणों की रक्षा या जीविकोपार्जन से नहीं, बल्कि जब भक्त उनके विरह की वेदना से छटपटाने लगता है, तो वह उनके मार्गदर्शन के लिए आते हैं। ईश्वर दर्शन की तीन स्थितियां होती हैं-आयोग, संयोग और वियोग। ईश्वर के साथ जब तक मनुष्य का मिलन नहीं होता, उस स्थिति को आयोग कहते हैं। जब उनकी कृपा से भक्त को उनके दर्शन हो जाएं, तो उसे संयोग कहते हैं और जब ईश्वर दर्शन देने के बाद बिछड़ जाते हैं, तो वह स्थिति वियोग कहलाती है। वियोग बड़ा ही दु:खद होता है, क्योंकि उसके बाद भक्त ईश्वर से मिलने के लिए हमेशा बेचैन रहता है।

ईश्वर भक्त को किसी भी परिस्थिति से उबार सकते हैं, लेकिन वे चाहते हैं कि उनके भक्त का हृदय स्वच्छ हो जाए और सभी विकार नष्ट होकर सद्गुणों का समावेश हो जाएं। वह उन्हें गर्व से अपना सके। इसलिए वे कठिन तप की परीक्षा लेते हैं। प्रभु के दर्शन उसी को हो सकते हैं, जो सच्चे मन से उनकी आराधना करता है। मनुष्य का शरीर भले ही कहीं पर हो, लेकिन उसका ध्यान परमात्मा की ओर होगा, तो वह प्रभु को जरूर प्राप्त करेगा।

Sunday 17 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 41

साईं ने कहा है, कि....
"ईश्वर बहुत दयालु व करुनामय है, मैं तो केवल उनका सेवक हूँ,
निरंतर ईश्वर का स्मरण करो।"

Saturday 16 May 2009

पतन की ओर ले जाती है निंदा

परनिंदा एक बुराई है। इससे मनुष्य को बचना चाहिए। दूसरों की निंदा करने वाला इंसान सदा धोखे में रहता है और वह इससे किसी ओर का नुकसान नहीं करता बल्कि वह स्वयं ही पतन के मार्ग पर अग्रसर होता है।

निंदा ऐसा घोर पाप है, जो प्रभु से मनुष्य को दूर ले जाती है। दूसरों की निंदा करने वाला मनुष्य जीवन में कभी भी मानसिक शांति नहीं पाता है बल्कि वह सदैव दुखी, अशांत व परेशान रहता है। दूसरों की सफलता से उदाहरण लेते हुए अगर मनुष्य लगन व निष्ठा से कर्मयोग का रास्ता अपनाए, तो ऐसी कोई मंजिल नहीं है, जिसे इंसान नहीं पा सकता। इसलिए निंदा पर समय व्यर्थ करने के बजाय सकारात्मक सोच बनाकर अच्छे कार्यो की ओर मन लगाना चाहिए। भक्ति में पाखंड की जरूरत नहीं है, क्योंकि प्रभु को सच्चे हृदय वाले सरल भक्त ही पसंद हैं। द्वेष व ईष्र्या की भावना से ऊपर उठकर प्रेम की भावना को विकसित करना चाहिए। यह ही जीवन में सच्ची सफलता का आधार है। बुराई के रास्ते पर चलकर कुछ देर तो मानव को सफलता का भ्रम रह सकता है, लेकिन एक तो इन हालात में मन अशांत व भयग्रस्त रहता है, दूसरे अंत में पछताना ही पड़ता है। भगवान की भक्ति से पहले उसके द्वारा बनाए गए मनुष्य से प्रेम करना जरूरी है, क्योंकि प्रभु की नजर में हर मनुष्य समान है। चाहे वह कोई भी हो। मनुष्य, मनुष्य में भेद करना उचित नहीं है। हालांकि गुण-दोष के आधार पर मानव तुच्छ व श्रेष्ठ हो सकता है, मगर हमें प्रत्येक मनुष्य से प्रेम करना चाहिए।

भक्ति के लिए कोई समय निर्धारित नहीं होता और प्रभु का स्मरण किसी भी समय किया जा सकता है। सिर्फ सच्ची भावना होनी जरूरी है। आडंबरों से प्रभु को धोखा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि भक्ति में पाखंडों का कोई स्थान नहीं है। निंदा की भावना त्यागने से क्रोध व लोभ जैसी भावनाएं खुद ही मिट जाती हैं, क्योंकि ईष्र्या से पैदा हुई निंदा अनेक बुराइयों को जन्म देकर मनुष्य को पतन की राह पर अग्रसर कर देती है।

Friday 15 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 40

साईं ने कहा है, कि....
"जब भी कोई द्वारिकामाई के शरण में आता है, उसी क्षण उसे स्वास्थ व सुखो की प्राप्ति होती है और सभी परेशनियों व दुःख-दर्द खत्म हो जाते है।"

साईं ने कहा है : भाग - 39

साईं ने कहा है, कि....
"जो हरि के चरणों में स्वयं को समर्पित कर देता है, उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।"

Thursday 14 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 38

साईं ने कहा है, कि....
"अगर तुम कुछ कर सकते हो तो दुसरो का भला करो।"

Wednesday 13 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 37

साईं ने कहा है, कि......
"जो मुझ पर पूर्ण विश्वास रखता है, वह निश्चित ही आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है।"

Tuesday 12 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 36

साईं ने कहा है, कि.......

"अगर तुम्हे कोई बुरा भला कहे, तो उतेजित मत हो।"

Monday 11 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 35

साईं ने कहा है, कि.....
"जो जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है,
वह आनंदित हो, अमर हो जाता है।
अन्य सभी तो जब तक प्राण है, तब तक जीवन जीते है।"

Sunday 10 May 2009

कबीर ने कहा है : भाग - 6

कबीर ने कहा है, कि.....

"आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक ।

कह `कबीर' नहिं उलटिए, वही एक की एक ॥"

अर्थात -

हमें कोई एक गाली दे और हम उलटकर उसे गालियाँ दें, तो वे गालियाँ अनेक हो जायेंगी। कबीर कहते हैं कि यदि गाली को पलटा न जाय, गाली का जवाब गाली से न दिया जाय, तो वह गाली एक ही रहेगी ।

Saturday 9 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 34

साईं ने कहा है, कि......

"अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखो।
सदा याद रखो कि वे ही ब्रम्हांड के नियंत्रण करता व संचालक है।"

कबीर ने कहा है : भाग - 5

कबीर ने कहा है, कि.....
"जबहिं नाम ह्रदय धरा,भया पाप का नास ।
मानों चिनगी आग की,परी पुरानी घास ॥"

अर्थात -
जब भगवान का स्मरण मन से किया जाता है, तो सम्पूर्ण पाप जीव के नष्ट हो जाते है। जिस प्रकार एक आग की चिंगारी घास में गिर पङे तो क्या होगा उससे सम्पूर्ण घास नष्ट हो जाती है । इसलिए भगवान का स्मरण ह्रदय से करना चाहिये।

Friday 8 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 33

साईं ने कहा है, कि.......

"लालची व्यक्ति को ना शान्ति है ना संतोष।"

Thursday 7 May 2009

कबीर ने कहा है : भाग - 4

कबीर ने कहा है, कि......
"कबीर क्षुधा कूकरी, करत भजन में भंग,
वाकूं टुकडा डारि के, सुमिरन करूं सुरंग।"

अर्थात -
संत शिरोमणि कबीरदास जीं कहते हैं कि "भूख कुतिया के समान है। इसके होते हुए भजन साधना में विध्न-बाधा होती है। अत: इसे शांत करने के लिए समय पर रोटी का टुकडा दे दो फिर संतोष और शांति के साथ ईश्वर की भक्ति और स्मरण कर सकते हो।"

साईं ने कहा है : भाग - 32

साईं ने कहा है, कि........
"तुम संसार में कही भी रहो, मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ।"

Wednesday 6 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 31

साईं ने कहा है, कि .....

"ईश्वर की लीला अपूर्व और अमूल्य है, वो सही मार्ग दिखाकर हमारी समस्त इच्छाए पूर्ण कर हमे संतुष्ट करते है और संतुष्ट व्यक्ति की गई आराधना प्रभु जल्द स्वीकार करते है।"

Tuesday 5 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 30


साईं ने कहा है, कि......

"मैं समस्त प्राणियो का प्रभु हूँ,
सब ही मेरी आगया का पालन करते है।"

Monday 4 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 29


साईं ने कहा है, कि........


"मुझे एक दो और दस गुना लो।"


अर्थ:-


बाबा को अपना एक प्रतिशत विश्वास दो और बाबा का दस गुना विश्वास प्राप्त करो।


बाबा को अपना एक प्रतिशत प्रेम दो और बाबा का दस गुना प्रेम प्राप्त करो।


बाबा को अपनी एक प्रतिशत श्रद्धा दो और बाबा की दस गुना श्रद्धा प्राप्त करो।

Sunday 3 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 28

साईं ने कहा है, कि.........
"प्रतिदिन पोथी(गीता) का पाठ करो, उसे पढ़ते समय प्रेम और भक्ति के साथ समझने की कोशिश भी करो।"

Saturday 2 May 2009

साईं ने कहा है : भाग - 27

साईं ने कहा है, कि .......

"मुसीबत के समय परमात्मा अविलम्भ अपने भक्त की सहायता करते है।"

Friday 1 May 2009

साईं ने कहा है : भाग -26

साईं ने कहा है, कि ......
"ईश्वर ने इस सुंदर संसार की रचना की है,
इसकी सुन्दरता की प्रसंशा करना हमारा कर्तव्य है।"

चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...