घाट के रस्ते
उस बँसवट से
इक पीली-सी चिड़िया
उसका कुछ अच्छा-सा नाम है !
मुझे पुकारे !
ताना मारे,
भर आएँ, आँखड़ियाँ !
उन्मन, ये फागुन की शाम है !
घाट की सीढ़ी तोड़-तोड़ कर बन-तुलसा उग आयीं
झुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईं
तोतापंखी किरनों में हिलती बाँसों की टहनी
यहीं बैठ कहती थी तुमसे सब कहनी-अनकहनी
आज खा गया बछड़ा माँ की रामायन की पोथी !
अच्छा अब जाने दो मुझको घर में कितना काम है !
इस सीढ़ी पर, यहीं जहाँ पर लगी हुई है काई
फिसल पड़ी थी मैं, फिर बाँहों में कितना शरमायी !
यहीं न तुमने उस दिन तोड़ दिया था मेरा कंगन !
यहाँ न आऊँगी अब, जाने क्या करने लगता मन !
लेकिन तब तो कभी न हममें तुममें पल-भर बनती !
तुम कहते थे जिसे छाँह है, मैं कहती थी घाम है !
अब तो नींद निगोड़ी सपनों-सपनों भटकी डोले
कभी-कभी तो बड़े सकारे कोयल ऐसे बोले
ज्यों सोते में किसी विषैली नागिन ने हो काटा
मेरे सँग-सँग अकसर चौंक-चौंक उठता सन्नाटा
पर फिर भी कुछ कभी न जाहिर करती हूँ इस डर से
कहीं न कोई कह दे कुछ, ये ऋतु इतनी बदनाम है !
ये फागुन की शाम है !
Sunday, 31 January 2010
Tuesday, 26 January 2010
राष्ट्रिय ध्वज : हरिवंशराय बच्चन
नागाधिराज श्रृंग पर खडी हुई,
समुद्र की तरंग पर अडी हुई,
स्वदेश में जगह-जगह गडी हुई,
अटल ध्वजा हरी, सफेद केसरी!
न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,
न द्वन्द-भेद के समक्ष यह झुकी,
सगर्व आस शत्रु-शीश पर ठुकी,
निडर ध्वजा हरी, सफेद केसरी!
चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें,
अजर सदा इसे लिये हुये जियें,
अमर सदा इसे लिये हुये मरें,
अजय ध्वजा हरी, सफेद केसरी!
ऐ मेरे प्यारे वतन : गुलजार
ऐ मेरे प्यारे वतन
ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझपे दिल कुर्बान
तू ही मेरी आरज़ू
तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान
जितना याद आता है मुझकोउतना तड़पाता है तू
तुझपे दिल कुर्बान
तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस ज़ुबां को जिसपे आए तेरा नाम
सबसे प्यारी सुबह तेरी
सबसे रंगीं तेरी शाम
तुझपे दिल कुर्बान
छोड़ कर तेरी गली को दूर आ पहुंचे हैं हम
है मगर ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की कसम
जिस जगह पैदा हुए थे
उस जगह ही निकले दम
तुझपे दिल कुर्बान
ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझपे दिल कुर्बान
तू ही मेरी आरज़ू
तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान
माँ का दिल बन के कभी सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं सी बेटी बन के याद आता है तूजितना याद आता है मुझकोउतना तड़पाता है तू
तुझपे दिल कुर्बान
तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस ज़ुबां को जिसपे आए तेरा नाम
सबसे प्यारी सुबह तेरी
सबसे रंगीं तेरी शाम
तुझपे दिल कुर्बान
छोड़ कर तेरी गली को दूर आ पहुंचे हैं हम
है मगर ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की कसम
जिस जगह पैदा हुए थे
उस जगह ही निकले दम
तुझपे दिल कुर्बान
Monday, 25 January 2010
यह अपना मुल्क है :-
यह अपना मुल्क है,
यहाँ रिश्वत को कहते सुविधा शुल्क है।
काम मर्जी से होगा,
जल्दी है, तो उसका शुल्क है।
~ * ~
यह नदियों का मुल्क है,
पर यहाँ पानी भी
बोतल में बिकता है।
जिसका १५ रुपये शुल्क है।
~ * ~
यह गरीबो का मुल्क है,
पर गरीबो की कोई सुनता नही।
अगर आप बाहुबली है,
तो सभी सुविधा निःशुल्क है।
~ * ~
यह अपना मुल्क है,
कर कुछ सकते नही।
कह कुछ भी सकते है,
क्योकि कहना निःशुल्क है।
~ * ~
यह अपना मुल्क है,
यहाँ विद्यालय बहुत है।
विद्यार्थी विद्यालय जाते नही,
फिर भी शिक्षा निःशुल्क है।
~ * ~
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो : मुंशी जाकिर् हुसैन्
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।
ऎ देश के सपूतो! मज़दूर और किसानो।।
है रास्ता भी रौशन और सामने है मंज़िल।
हिम्मत से काम लो तुम आसान होगी मुश्किल।।
कर के उसे दिखा दो, जो अपने दिल में ठानो।
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।
भूखे महाजनों ने, ले रखे हैं इजारे।
जिनके सितम से लाखों फिरते हैं मारे-मारे।।
हैं देश के ये दुश्मन! इनको न दोस्त जानो।
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।
ऎ देश के सपूतो! मज़दूर और किसानो।।
है रास्ता भी रौशन और सामने है मंज़िल।
हिम्मत से काम लो तुम आसान होगी मुश्किल।।
कर के उसे दिखा दो, जो अपने दिल में ठानो।
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।
भूखे महाजनों ने, ले रखे हैं इजारे।
जिनके सितम से लाखों फिरते हैं मारे-मारे।।
हैं देश के ये दुश्मन! इनको न दोस्त जानो।
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।
Saturday, 23 January 2010
सुभाष की मृत्यु पर : धर्मवीर भारती
दूर देश में किसी विदेशी गगन खंड के नीचे
सोये होगे तुम किरनों के तीरों की शैय्या पर
मानवता के तरुण रक्त से लिखा संदेशा पाकर
मृत्यु देवताओं ने होंगे प्राण तुम्हारे खींचे
प्राण तुम्हारे धूमकेतु से चीर गगन पट झीना
जिस दिन पहुंचे होंगे देवलोक की सीमाओं पर
अमर हो गई होगी आसन से मौत मूर्च्छिता होकर
और फट गया होगा ईश्वर के मरघट का सीना
और देवताओं ने ले कर ध्रुव तारों की टेक -
छिड़के होंगे तुम पर तरुनाई के खूनी फूल
खुद ईश्वर ने चीर अंगूठा अपनी सत्ता भूल
उठ कर स्वयं किया होगा विद्रोही का अभिषेक
किंतु स्वर्ग से असंतुष्ट तुम, यह स्वागत का शोर
धीमे-धीमे जबकि पड़ गया होगा बिलकुल शांत
और रह गया होगा जब वह स्वर्ग देश
खोल कफ़न ताका होगा तुमने भारत का भोर।
Tuesday, 19 January 2010
Thursday, 14 January 2010
Wednesday, 13 January 2010
काशी साईं की पहली सालगिरह दिनाक 13-01-2010
पर्यावरण शुद्धिकरण व भारत प्रेम की भावना को जागृत करने के लिए आर्या समाज पद्धति से हवन का आयोजन:
पारस नाथ यादव (अधिवक्ता), सतेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (अधिवक्ता), अवधेश कुशवाहा(अधिवक्ता), के.डी.सिंह(अधिवक्ता), अंशुमान(सचिव) और काली प्रसाद दुबे(अध्यक्ष) हवन से पूर्व वार्ता करते हुए। अंशुमान (सचिव), अनुज प्रकाश (प्रवक्ता), अवधेश कुशवाहा(अधिवक्ता), राकेश लाभ, राजबली दुबे, मुकेश, रामदेव शास्त्री(आर्या समाज पुरोहित) हवन करते हुए।
रामदेव शास्त्री (आर्या समाज पुरोहित), त्रिपाठी जी (आर्या समाज ज्ञाता) मुकेश, अवधेश कुशवाहा (अधिवक्ता), काली प्रसाद दुबे(अध्यक्ष), सतेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (अधिवक्ता) , के.डी.सिंह (अधिवक्ता) , सूर्य कुमार गोंड (अधिवक्ता) , पारस नाथ यादव (अधिवक्ता) , राजबली दुबे, अनुज प्रकाश (प्रवक्ता), और अंशुमान (सचिव) हवन करते हुए।
Monday, 11 January 2010
Monday, 4 January 2010
Friday, 1 January 2010
नव वर्ष - २०१० आप सबके लिए मंगलमय हों
नव वर्ष - 2010 आप सब के लिए मंगलमय हों
साईं ने कहा है, कि.....
सचिदानंद सद्गुरु श्री साईं नाथ महाराज की जय .....!! ""
साईं ने कहा है, कि.....
- "मेरे शब्द सदैव अर्थपूर्ण होते है, खोखले नही
- "चाहे तुम अच्छे हों या बुरे, मै तुम्हारी सभी इच्छाये पूर्ण करूँगा क्योकि तुम मेरे हों ।"
- "आप अपना विश्वास एक इषित (इच्छा-अनुसार) स्थान पर स्थिर कर ले , इस प्रकार व्यर्थ भटकने से कोई लाभ नही है ।'
- "साईं सूक्ष्म तत्व में रहकर भी सभी को मोहित करते है ।"
- "मनुष्य अंतकाल में जिस भाव का स्मरण करते हुए शारीर सोचता है , अगले जन्म में उसे योनी में चला जाता है ।"
"" बोलिए अनंतकोटी ब्रह्मंद्नाय्क राजाधिराज योगिराज परब्रम्ह
सचिदानंद सद्गुरु श्री साईं नाथ महाराज की जय .....!! ""
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चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...
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संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ। साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ। साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ। साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जा...
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काशी साईं फाउंडेशन के अंशदान रुपये 2,100/- एवं निवेदन पत्र दिनांक 25-09-2013 पर जिलाधिकारी वाराणसी ने टाउन हाल स्थित "भारत के राष्ट...
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भगत देश का - शहीदेआजम भगत सिंह को समर्पित