गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥ 1 ॥
अर्थ :- गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 2 ॥
अर्थ :- कबीरदास कहते हैं कि मैं अपने गुरु पर प्रत्येक क्षण सैकड़ों बार न्यौछावर जाता हूँ जिसने मुझको बिना विलम्ब के मनुष्य से देवता कर दिया।
कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥ 3 ॥
अर्थ : कबीरदास ने इस दोहे में भीख और माला जपने का विरोध किया हैं. कबीर कहते हैं कि माला मन की फेरनी चाहिए और संसार में भीख मांगने से बुरा और कुछ नहीं हैं. यदि मन की माला फेरी जाए तो हरि मिल जाते हैं बस एक बार चरखें रूपी गले में रखकर देखना हैं।