कबीर रेख सिंदूर उर काजल दिया न जाए
नैनं प्रीतम रूम रहा दूजा कहाँ समाये
प्रीत जो लगी घुल गई पीठ गई मन माहीं
रोम रोम पियु पियु कहे मुख की सिर्धा नाहीं
बुरा भला सब को सुन लीजो, कर गुजरान गरीबी में
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...
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