Monday, 12 October 2009

आज़ादी के दीवाने : रामप्रसाद बिस्मिल

रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र:-

शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा -
"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।"
यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रो बार भी।तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।।हे ईश! भारतवर्ष में, शतवार मेरा जन्म हो।कारण सदा ही मृत्यु का, देशीय कारक कर्म हो।।
मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से।होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रूधिर की धार से।।उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का।तब नाश होगा सर्वदा, दुख शोक के लव लेश का।।

सब से मेरा नमस्कार कहिए,

तुम्हारा
बिस्मिल"



रामप्रसाद बिस्मिल की शायरी, जो उन्होने कालकोठरी में लिखी और गाई थी, उसका एकट-एक शब्द आज भी भारतीय जनमानस पर उतना ही असर रखता है जितना उन दिनो रखता था। बिस्मिल की निम्न शायरी का हर शब्द अमर है:

सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना, बाजुए कातिल में है।।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।।

और:

दिन खून के हमारे, यारो न भूल जाना
सूनी पड़ी कबर पे इक गुल खिलाते जाना।

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चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...