श्री बच्चन जी की यह कविता 23/11/2007 (उत्तर प्रदेश कोर्ट ब्लास्ट) व 26/11/2008 (मुंबई हमला) में शहीद जवानों व भारतीयों को व उनके परिवार को शत शत नमन के साथ समर्पित है:-
इसी घर से
एक दिन
शहीद का जनाज़ा निकला था,
तिरंगे में लिपटा,
हज़ारों की भीड़ में।
काँधा देने की होड़ में
सैकड़ो के कुर्ते फटे थे,
पुट्ठे छिले थे।
भारत माता की जय,
इंकलाब ज़िन्दाबाद, (2009 में शायद यह होना चहिये "अमर शहीद जवान ज़िन्दाबाद")
अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद (2009 में शायद यह होना चहिये "आतंकवाद व भ्रष्टाचार मुर्दाबाद")
के नारों में शहीद की माँ का रोदन
डूब गया था।
उसके आँसुओ की लड़ी
फूल, खील, बताशों की झडी में
छिप गई थी,
जनता चिल्लाई थी-
तेरा नाम सोने के अक्षरों में लिखा जाएगा।
गली किसी गर्व से दिप गई थी।
इसी घर से
तीस बरस बाद
शहीद की माँ का जनाजा निकला है,
तिरंगे में लिपटा नहीं,
(क्योंकि वह ख़ास-ख़ास
लोगों के लिये विहित है)
केवल चार काँधों पर
राम नाम सत्य है
गोपाल नाम सत्य है
के पुराने नारों पर;
चर्चा है, बुढिया बे-सहारा थी,
जीवन के कष्टों से मुक्त हुई,
गली किसी राहत सेछुई छुई।
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