जब भंवरा फूल पर बैठ जाता है तो रात को जब फूल बंद हो जाता है,
तो भंवरा भी उसी में बंद हो जाता है !
वो बाहर नही जाता !
जो भंवरा सब छेद कर निकल जाता है,
वो ही भंवरा प्रेम के वशीभूत फूल से नही निकलता !
उस में ही मर जाता है !
उसी प्रकार मेरा मन प्रभु आपके चरणों का भंवरा बन गया है,
जो यहाँ से कही नही जाना चाहता !
मन की स्थिति जब इतनी प्रगाड़ता पर पहुचती है !
तब हमारे अन्दर प्रेमाभक्ति का उदय हो जाता है !
अविरल अश्रुपात होने लगता है !
अपने प्रीतम के सिवा कुछ नज़र नहीं आता है !
आठों याम सिर्फ प्रीतम और कुछ नहीं !
मन की इस स्थिति को खाते हैं !
प्रेम भक्ति !
Wednesday, 3 February 2010
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