साईं ने कहा है.... कि
तुम्हारे मन में सदा प्रेम और भक्ति का भावः बना रहे ,
स्वयं को बुरे विचारो से दूर रखो।
साईं ने कहा है.... कि
तुम्हारे मन में सदा प्रेम और भक्ति का भावः बना रहे ,
स्वयं को बुरे विचारो से दूर रखो।
एक का साजन मन्दिर में एक का प्रीतम मस्जिद में,
और मै सांसों की माला पे सिमरूं मैं पी (साईं) का नाम।
सांसों की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम.......
प्रेम के रंग में ऐसी डूबी, बन गया एक ही रूप,
प्रेम की माला जपते जपते आप बनी मैं श्याम (साईं) ।
सांसों की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम.......
स्रोत :- मीरा बाई के भजन।
साईं बाबा ने कहा है...... कि
"गरीब को तंग करके, उसका तिरस्कार मत करो."
साईं ने कहा है, कि.....
"घटनाओ को घटने दो हमारा लाभ तो केवल प्रभु का ध्यान करने में है । "
साईं ने कहा है, कि
"मेरे पास आओ, खुद को समर्पित करो, फिर देखो"
"सबको प्यार करो, क्योंकि मैं सब में हूं। अगर तुम पशुओं और सभी मनुष्यों को प्रेम करोगे, तो मुझे पाने में कभी असफल नहीं होगे।' 'एक बार शिरडी की धरती छू लो, हर कष्ट छूट जाएगा।"
कितने सरल सूत्र दिये है, ना अपने बाबा सांई ने।
और कितना मुश्किल बना दिया है ना हमनें, है ना ??
अर्थात
।। मानव प्रेम ही ईश्वर प्रेम है ।।
साईं ने कहा है, कि
"जो मुझे अत्यधिक प्रेम करता है, वह सदैव मेरा दर्शन पाता है उसके लिए मेरे बिना सारा संसार ही सूना है। वह केवल मेरा ही लीलागान करता है। वह सतत् मेरा ही ध्यान करता है और सदैव मेरा ही नाम जपता है। जो पूर्ण रूप से मेरी ही शरण मे आ जाता है और सदा मेरा ही स्मरण करता है, अपने ऊपर उसका यह ऋण मै उसे मुक्ति (आत्मोपलब्धि) प्रदान करके चुका दूंगा। जो मेरा ही चिंतन करता है, और मेरा प्रेम ही जिसकी भूख-प्यास है और जो पहले मुझे अर्पित किये बिना कुछ भी नही खाता, मैं उसके अधीन हूं। जो इस प्रकार मेरी शरण मे आता है, बह मुझसे मिल कर उसी तरह एकाकार हो जाता है, जिस तरह नदियां समुंद्र से मिल कर तदाकार हो जाती है। अतएव महत्ता और अहंकार का सर्वथा परित्याग करके तुम्हें मेरे प्रति, जो तुम्हारे ह्रदय मे आसीन है, पूर्ण रूप से समर्पित हो जाना चाहिए"
साईं ने कहा है, कि
"जो दूसरों को पीड़ा पहुंचाता है, वह मेरे ह्रदय को दुःख देता है तथा मुझे कष्ट पहुंचाता है। इसके विपरीत जो स्वंय कष्ट सहन करता है, वह मुझे अधिक प्रिय है"
साईं ने कहा कि,
"कर्म पथ अति रहस्यपूर्ण है। यद्यपि मै कुछ भी नही करता, फिर भी लोग मुझे ही कर्मों के लिये दोषी ठहराते है। मैं तो एक दर्शक मात्र ही हूं। केवल ईश्वर ही एक सताधारी और प्रेरणा देने वाले है। वे ही परम दयालु है। मै न तो ईश्वर हूं और न मालिक, केवल उनका एक आज्ञाकारी सेवक ही हूं और सदैव उनका स्मरण किया करता हूं। जो निरभिमान होकर, अपने को कृतज्ञ समझ कर उन पर पूर्ण विश्वास करेगा, उसके कष्ट दूर हो जाएंगे और उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी। "
साईं ने कहा है..... कि
"मस्जिद माई (द्वारिका माई) भक्तो की माँ है, ये कष्टों से तुम्हारी रक्षा करेगी।"
" ये दुनिया एक दर्पण है, यहाँ हम जो देते हैं, वही हमे पलटकर वापस मिलता है।" इसलिए खुशियाँ बांटते रहना चाहिए..........!!!
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...