साईं ने कहा कि,
"कर्म पथ अति रहस्यपूर्ण है। यद्यपि मै कुछ भी नही करता, फिर भी लोग मुझे ही कर्मों के लिये दोषी ठहराते है। मैं तो एक दर्शक मात्र ही हूं। केवल ईश्वर ही एक सताधारी और प्रेरणा देने वाले है। वे ही परम दयालु है। मै न तो ईश्वर हूं और न मालिक, केवल उनका एक आज्ञाकारी सेवक ही हूं और सदैव उनका स्मरण किया करता हूं। जो निरभिमान होकर, अपने को कृतज्ञ समझ कर उन पर पूर्ण विश्वास करेगा, उसके कष्ट दूर हो जाएंगे और उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी। "
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