साईं ने कहा है, कि
"जो मुझे अत्यधिक प्रेम करता है, वह सदैव मेरा दर्शन पाता है उसके लिए मेरे बिना सारा संसार ही सूना है। वह केवल मेरा ही लीलागान करता है। वह सतत् मेरा ही ध्यान करता है और सदैव मेरा ही नाम जपता है। जो पूर्ण रूप से मेरी ही शरण मे आ जाता है और सदा मेरा ही स्मरण करता है, अपने ऊपर उसका यह ऋण मै उसे मुक्ति (आत्मोपलब्धि) प्रदान करके चुका दूंगा। जो मेरा ही चिंतन करता है, और मेरा प्रेम ही जिसकी भूख-प्यास है और जो पहले मुझे अर्पित किये बिना कुछ भी नही खाता, मैं उसके अधीन हूं। जो इस प्रकार मेरी शरण मे आता है, बह मुझसे मिल कर उसी तरह एकाकार हो जाता है, जिस तरह नदियां समुंद्र से मिल कर तदाकार हो जाती है। अतएव महत्ता और अहंकार का सर्वथा परित्याग करके तुम्हें मेरे प्रति, जो तुम्हारे ह्रदय मे आसीन है, पूर्ण रूप से समर्पित हो जाना चाहिए"
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