"कबीर के राम" की तरह काशी साईं फाउंडेशन भी साईं के निर्गुण स्वरुप को मानता है, व साईं के नाम व काम में विश्वास रखता हैं, हालाँकि यह बात सामान्य रूप से प्रतिष्ठित भी है कि "नाम रूप से बढ़कर है" और यह भी प्रचलित कि "राम से बढ़ा राम का नाम"।
कबीर कहते हैं, “संतौ, धोखा कासूं कहिये। गुनमैं निरगुन, निरगुनमैं गुन, बाट छांड़ि क्यूं बहिसे!”
और तो साईं भी कहते है, "अगर तुम मेरे निराकार सचिदानंद स्वरुप का ध्यान करने में असमर्थ हो, तो मेरे साकार रूप का ही ध्यान करो!"
"मानव प्रेम ही, ईश्वर प्रेम है"
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चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...

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संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ। साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ। साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ। साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जा...
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हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ? रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ? जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते, हमा...
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साईं ने कहा है, कि....... "लालची व्यक्ति को वैराग्य और मोक्ष की प्राप्ति कभी नही हो सकती ।"