Wednesday 4 October 2017

कबीर के लोकप्रिय दोहे :: भाग 3

सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद॥1॥
अर्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति सुख में ईश्वर को याद नहीं करता हैं और केवल दुःख में भगवन को याद करता हैं तो कबीर के अनुसार इस संसार में उसके दुःख कोई नहीं हर सकता हैं. क्योकि प्रभु आनंदस्वरूप हैं।

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ 2 ॥
अर्थ : कबीर ने इस पंक्तियों में स्वयं को धन की मोहमाया से दूर रखने की बात कही हैं. कबीर कहते हैं कि ईश्वर मुझे केवल इतना ही धन देना जिससे मेरा गुज़ारा हो सके और मैं भूखा ना रहूं और ना ही मेरे घर आया कोई अतिथि भूखा जाए।

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट॥3॥
अर्थ : कबीर कहते हैं कि व्यक्ति को जब भी समय मिले उसे राम नाम रूपी धन लुट लेना चाहिए, यह प्राण अनिश्चित हैं, निकल जाने के बाद इसका पछतावा रह जायेगा।

Wednesday 3 May 2017

कबीर के लोकप्रिय दोहे :: भाग 2

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥ 1 ॥
अर्थ :- गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 2 ॥
अर्थ :- कबीरदास कहते हैं कि मैं अपने गुरु पर प्रत्येक क्षण सैकड़ों बार न्यौछावर जाता हूँ जिसने मुझको बिना विलम्ब के मनुष्य से देवता कर दिया।

कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥ 3 ॥
अर्थ : कबीरदास ने इस दोहे में भीख और माला जपने का विरोध किया हैं. कबीर कहते हैं कि माला मन की फेरनी चाहिए और संसार में भीख मांगने से बुरा और कुछ नहीं हैं. यदि मन की माला फेरी जाए तो हरि मिल जाते हैं बस एक बार चरखें रूपी गले में रखकर देखना हैं।

Monday 10 April 2017

कबीर के लोकप्रिय दोहे :: भाग 1

दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥1॥
अर्थ :- कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों।
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तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय ।
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ॥2॥
अर्थ :- कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है।
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माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥3॥
अर्थ :- कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो।

चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...