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Saturday, 17 October 2020

Best wishes for Navratri :-

Goddess 'Durga' is an embodiment of 'Shakti' who overcame the evils of the world. 
May this Navratri, everyone uses Her blessings and power to overcome their problems in life. 
~ Wish you a very Happy Navratri ~
Happy Navratri - Kashi Sai Foundation - 2020



Wednesday, 20 November 2019

बनारस एक ऐसा शहर जहां मृत्यु भी उत्सव है:-

 बनारस। मृत्यु और काशी का अपने आप में अनोखा रिश्ता है। हिन्दू धर्म को मानने वाले कहीं भी रहते हो, मगर जीवन के बाद मोक्ष प्राप्त करने की चाह में वो भोलेनाथ की नगरी "काशी" ही आना चाहते हैं। सफेद चादर में लिपटा शरीर उस राम नामी चादर, लोगों की भीड़ और उसी भीड़ से आती "राम नाम सत्य है'’ की आवाज, ऐसा दृश्य आपको कहीं मिले तो समझ जाइएगा आप बनारस के मणिकर्णिका घाट अथवा हरीशचंद्र घाट पर हैं।

देखा जाए तो मृत्यु के बाद पीने-पिलाने, खाने-खिलाने, नाचने-गाने और बकायदा जश्न मनाने का चलन कई जातियों में है। नगाड़े की जोशीली संगीत पर थिरकते बूढ़े-बच्चे और नौजवान। किसी चेहरे पर शोक की कोई रेखा नहीं, हर होंठ पर मुस्कान। मद्य के सुरूर में मदमस्त लोगों का हर्ष मिश्रित शोर। जुलूस चाहे जहां से भी निकाला हो, मगर झूमता-घूमता शमशान घाट की ओर बढ़ता चला जाता है।

जुलूस भी आम सामान्य नहीं। इसका जोश देखकर ऐसा भ्रम होता है, मानो कोई वरयात्रा द्वाराचार के लिए वधू पक्ष के द्वार की ओर बढ़ रहा हो। मगर अचानक ही यह भ्रम उस वक़्त टूट जाता है, जब ‘यात्रा’ के नजदीक पहुंचने पर बाजे-गाजों के शोर के बीच ही ‘राम नाम सत्य है’ के स्वर कानों से टकराने लगते हैं, उसी क्षण यह भी स्पष्ट हो जाता है कि, वह वरयात्रा नहीं बल्कि शवयात्रा है।

सदियों से काशी का मणिकर्णिका घाट व हरीशचंद्र घाट लोगों के शवदाह का गवाह बनता आया है। गंगा के तट पर बसा बनारस (वाराणसी) एक मात्र ऐसा शहर है जहां मरने के बाद मृत्यु का उत्सव मनाया जाता है, मरने की खुशी मनाई जाती है। खुशी, सांसारिक सुख त्यागने कि, खुशी, मोक्ष प्राप्त करने की और इसी खुशी को देखने और भारतीय संस्कृति के इस पौराणिक मान्यता से रूबरू होने प्रत्येक वर्ष दुनिया भर से ढेरों पर्यटक काशी का रुख करते हैं। काशी में हर तरह की अनुभूति प्रपट करते हुए सभी घाटों के बीच मन की शांति के साथ उन्हें जीवन-मरण के सुख का भी ज्ञान हो जाता है।

आखिर क्यों, इस तरह का जोश, हर्ष उल्लास वो भी किसी अपने की मृत्यु पर बार-बार यही सवाल मन में आता होगा?

शवयात्रा में शामिल लोगों से पूछा जायेगा तो ज्ञात होगा कि, मृतक ‘'एक सौ दुई साल तक जियलन, मन लगा के आपन करम कइलन, जिम्मेदारी पूरा कइलन। नाती-पोता, पड़पोता खेला के बिदा लेहलन त गम कइसन। मरे के त आखिर सबही के हौ एक दिन, फिर काहे के रोना-धोना। मटिये क सरीर मटिये बनल बिछौना।’'

उपरोक्त बातों को बताने वाले व्यक्ति को शायद खुद भी नहीं मालूम कि उनकी जुबान से खुद 'कबीर' बोल रहे हैं, जो ‘निरगुनिया’ गाते बोल गए हैं कि, "माटी बिछौना माटी ओढ़ना माटी में मिल जाना होगा।"

जाने अनजाने में ही कितनी बड़ी बात बोल गया यह इंसान जो यकीनन हर किसी के जीवन का सबसे बड़ा सत्य है और शायद इसीलिए काशी का अपना ही महत्व है और इतनी खास हमारी "काशी" है।

@KashiSai

Friday, 3 May 2019

मेरे राम को खण्डित करने वाले सदैव दण्डित होते हैं:-

 राम को खण्डित करने वाले सदैव दण्डित होते हैं। इस वाक्य से इस पोस्ट की शुरुआत कर रहा हूँ, क्योंकि यह सत्य है। इतिहास गवाह है, जिस किसी ने "राम-नाम" को खण्डित करने का प्रयास किया वह स्वयं खण्डित हो गया।

मैं सिर्फ उस इतिहास की बात करता हूँ जो मैंने अपने 44 साल के जीवन में देखा व सुना है।

***पहली घटना जिसने राम-नाम की राजनीति में ताला खुलवाया, उसका शरीर खण्ड-खण्ड हो गया।

***दूसरी घटना, जिसने राम-नाम पर रथयात्रा निकालकर राजनीति की, उनके प्रधान बनने का सपना तीन बार खण्ड-खण्ड हो गया।

***तीसरी घटना जिसका दायित्व था कि उसे राम-नाम की राजनीति को रोकना है, उसने ऐसा नहीं किया तो उसके ही लोगों ने उसे मरने के बाद राजघाट, दिल्ली के बाहर फेंक दिया।

इसलिए राम-नाम की राजनीति बंद करो और राम का नाम लेकर राम की जनता के लिए काम करो।

Tuesday, 20 November 2018

देवी देवताओं की आरती के बाद, क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र?

 हिंदू धर्म को मानने वाले श्रद्धालु मंदिरों में या घरों में होनी वाली दैनिक पूजा विधान में देवी देवताओं की आरती पूर्ण होने के बाद कुछ वैदिक मंत्रों का उच्चारण अनिवार्य रूप से करते है । सभी देवी-देवताओं की स्तुति के मंत्र भी अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी यज्ञ या पूजा समपन्न होता है, तो उसके बाद भगवान की आरती की जाती और आरती के पूर्ण होते ही इस दिव्य व अलौकिक मंत्र को विशेष रूप से बोला जाता है ।

कर्पूरगौरं मंत्र:-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।

- इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । इसका अर्थ इस प्रकार है- कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले । करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं । संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं । भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं । सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।

अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।

आखिर आरती के बाद यही मंत्र क्यों

- किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं । भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है । ये माना जाता है कि भगवान शिव जी शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी प्रवत्ति वाला है । लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य और सुंदर है । भगवान शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति । ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे, शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं । ऐसे शिवजी हमारे मन में शिव वास कर, मृत्यु का भय दूर करें ।

Monday, 15 October 2018

My Message to Sai Baba - "Aawaz Deke Hamen Tum Bulao" Sung by लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी

आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ 

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

अभी तो मेरी ज़िंदगी है परेशां

कहीं मर के हो खाक भी न परेशां

दिये की तरह से न हमको जलाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

मैं सांसों के हर तार में छुप रहा हूँ

मैं धड़कन के हर राग में बस रहा हूँ

ज़रा दिल की जानिब निगाहें झुकाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

ना होंगे अगर हम तो रोते रहोगे

सदा दिल का दामन भिगोते रहोगे

जो तुम पर मिटा हो उसे ना मिटाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

Tuesday, 10 April 2018

कबीर

कबीर के literature काे भी तत्समय poor की संज्ञा दिया गया था। आज वर्षों बाद कबीर के विचार जीवित हैं परन्तु विरोधियों का ना ताे विचार रहा और ना ही उनका अस्तित्व।

कबीर कहते हैं-
चाल बकुल की चलत है, बहुरि कहावै हंस।
ते मुक्ता कैसे चुगे, पड़े काल के फंस।।
भावार्थ:-
जो बगुले के आचरण में चलकर, पुनः हंस कहलाते हैं वे ज्ञान - मोती कैसे चुगेगे ? वे तो कल्पना काल में पड़े हैं।
@KashiSai

Monday, 10 April 2017

कबीर के लोकप्रिय दोहे :: भाग 1

दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥1॥
अर्थ :- कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों।
~ * ~ 
तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय ।
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ॥2॥
अर्थ :- कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है।
~ * ~
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥3॥
अर्थ :- कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो।

Monday, 13 April 2015

राम नाम अर्थ: -

'राम' का नाम जपते है सब ताे 'राम' के नाम का मायने भी समझाें... 'राम' नाम तीन अक्षराें का संगम है।
 "र" + "आ" + "म"  
उपर्युक्त अक्षराें के मायने कुछ यूं हाे सके हैं....
"र" :- 'राम' के नाम में "रस है प्रेम" का, जिससे बन्धी थी वैदेरी प्यारी व भक्त।
"आ":- 'राम' के नाम में "आस है मिलन की" जिससे बन्धें थे लक्ष्मन संग सारे भाई व भक्त।
"म":- 'राम' के नाम में "माेक्ष है जीवन का" जिससे बन्धें थे बजरंगी व भक्त।

समझ सकाे ताे समझाें राम के नाम काे। डूबाें और डूबाओं सबकाे प्रेम के रस में तुम। दाे आस जीने की सबकाे और आसरा बनाे सबका। माेक्ष मिल जायेगा राम के प्रेम में, बस राम के बंदाें से प्रेम करके देखाे।
By Anshuman Dubey
web link:-

Thursday, 14 August 2014

स्वतंत्रता दिवस - 2014 की हार्दिक शुभकामनाएं

न चाहूं मान - राम प्रसाद बिस्मिल
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न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना

करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना

Wednesday, 12 March 2014

इस बार होली पर, रूठों को अब मना लूं

रंगों से दिल सजा लूं इस बार होली पर
रूठों को अब मना लूं इस बार होली पर। 

 
इक स्नेह रंग घोलूँ आंसू की धार में
पानी ज़रा बचा लूं इस बार होली पर। 

 
अपनों की बेवफाई से मन है हुआ उदास
इक मस्त फाग गा लूं इस बार होली पर। 

 
रिश्तों में आजकल तो है आ गई खटास
मीठा तो कुछ बना लूं इस बार होली पर। 

 
उम्मीद की कमी से फीकी हुई जो आँखें
उनमें उजास ला दूं इस बार होली पर। 

 द्वारा :-  भारती पंडित 
 

Monday, 17 February 2014

सावधान भारत सावधान...!!! चुनाव सिर पर हैं...!!!

जातिवाद हमारे देश की सबसे बड़ी बीमारी है, यह भ्रष्टाचार से भी बड़ी बीमारी है। कुछ दूषित मानसिकता के लोग और नेता अपने निजी स्वार्थ में जातिवाद को हवा देते है। 
क्या 21 वी सदी में जातिवाद का कोई महत्त्व है ? 
मेरे विचारों के अनुसार जातिवाद का कोई महत्त्व नहीं है। 
दूषित मानसिकता के लोग और नेता चुनाव जीतने के लिए और अपना महत्व बनाये रखने के लिए जाति के नाम पर वर्षों से पूरे देश को गुमराह कर रहे हैं और फिर चुनाव सिर पर हैं...!!!  अतः  
सावधान भारत सावधान……!!!
जातिवाद ही नहीं ये दूषित मानसिकता के लोग और नेता धर्म एवं क्षेत्रवाद के नाम पर अपनी राजनैतिक इच्छाओं को पूरा करने की आस में हैं। अतः  
सावधान भारत सावधान……!!!

संत कबीर ने इस सत्य को कई सदी पूर्व अपनी एक रचना में कह दिया था, संत कबीर की उस रचना का शीर्षक है "साधो, देखो जग बौराना"।  
साधो, देखो जग बौराना ।
साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।
हिन्दू कहत, राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।
बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना ।
आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना ।
माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जाना ।
घर-घर मंत्र जो देन फिरत हैं, माया के अभिमाना ।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूढ़े, अन्तकाल पछिताना ।
बहुतक देखे पीर-औलिया, पढ़ै किताब-कुराना ।
करै मुरीद, कबर बतलावैं, उनहूँ खुदा न जाना ।
हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, दोनों घर से भागी ।
वह करै जिबह, वो झटका मारे, आग दोऊ घर लागी ।
या विधि हँसत चलत है, हमको आप कहावै स्याना ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना । 

Sunday, 5 January 2014

काशी साईं फाउंडेशन ने खिलाड़ियो को RCM Sports Award से सम्मानित किया :-

इलाहाबाद। 22वीं आर. सी. मिश्र क्रिकेट प्रतियोगिता - 2014 का फ़ाइनल मैच रविवार दिनांक 05-01-2014 को इलाहाबाद स्थित परेड ग्राउंड में आयोजित हुआ। फ़ाइनल मैच में इलाहाबाद क्रिकेट अकादमी ने विप्लव स्पोर्टिंग क्लब को 13 रन से हराकर 22वीं आर.सी.मिश्र क्रिकेट प्रतियोगिता का खिताब जीत लिया। खिताबी मुकाबले में पहले बल्लेबाजी करते हुए इलाहाबाद क्रिकेट अकादमी ने निर्धारित 35 ओवर में 8 विकेट पर 193 रन बनाकर विप्लव स्पोर्टिंग क्लब को 34.3 ओवर में 180 रन पर समेट दिया। मैच से पहले पूर्व रणजी क्रिकेटर श्री मोहम्मद तारिफ ने खिलाड़ियों से परिचय प्राप्त किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बैंक आफ महाराष्ट्र के निदेशक श्री रमेश चन्द्र अग्रवाल ने पुरस्कार वितरित किया। वाराणसी की संस्था "काशी साईं फाउण्डेशन, वाराणसी" की ओर से 'Best Fielder'-श्री अनुपम कुमार, 'Best Bowler'-श्री शुभम त्रिपाठी और 'Best Batsman'-श्री अभिषेक यादव को ट्राफी और पुरस्कार राशि का वितरण "काशी साईं फाउण्डेशन" के सचिव अंशुमान दुबे (अधिवक्ता) द्वारा किया गया। 22वीं आरसी मिश्र क्रिकेट प्रतियोगिता आयोजन "सागर स्पोर्टिंग क्लब, इलाहाबाद" द्वारा लगातार 22वीं बार सफलता पूर्वक किया गया है। आयोजन सचिव उल्लास गोडबोले ने धन्यवाद ज्ञापित और ई० दिनेश चन्द्र मिश्र ने कार्यक्रम का संचालन किया। उक्त अवसर पर श्री मधु चकहा, श्री अजय तिवारी, श्री राकेश लाभ, श्री आयाम खन्ना,  श्री उत्पल दादा, श्री विश्वनाथ मिश्रा, आदि गणमान्य अतिथि उपस्थित थे। 






मुख्य अतिथि बैंक आफ महाराष्ट्र के निदेशक श्री रमेश चन्द्र अग्रवाल सभा को सम्बोधित करते हुए।






श्री राकेश लाभ व श्री अंशुमान दुबे (अधिवक्ता)

श्री अंशुमान दुबे (अधिवक्ता) स्व. रमेश चन्द्र मिश्रा को श्रदा सुमन अर्पित करते हुए।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए ई० दिनेश चन्द्र मिश्र

Friday, 27 December 2013

थैलासीमिया रोगी बालक के लिए रक्तदान:-

वाराणसी। आज दिनांक 27-12-2013 को काशी साई परिवार के आवाहन पर थैलासीमिया रोगी बालक मास्टर रजत मिश्रा, उम्र 10 वर्ष, पुत्र श्री रूद्र नाथ मिश्रा, अधिवक्ता एवं श्रीमती मीना देवी मिश्रा निवासी ए. 2/29, कामेश्वर महादेव, वाराणसी के लिए सरसुंदरलाल हॉस्पिटल, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.), वाराणसी के ब्लड बैंक में निम्न लोगों ने रक्तदान कर अपना सहयोग दिया:-
  1. श्री डॉ. अमित पाण्डेय, सिगरा, वाराणसी 
  2. श्री अमित राय, अधिवक्ता, कचहरी, वाराणसी 
  3. श्री संजीव सिंह, आई.टी., बी.एच.यू., वाराणसी
उक्त रक्तदान के आयोजन में काशी साईं परिवार के सचिव श्री अंशुमान दुबे (अधिवक्ता) का विशेष योगदान रहा। सचिव श्री अंशुमान दुबे द्वारा सभी रक्तदाताओं को बिस्कुट, आयरन की दवा, मल्टी विटामिन की दवा एवं काशी साईं-स्मृति चिन्ह भी भेंट किया गया। उक्त अवसर पर ब्लड बैंक के इंचार्ज श्री वाई.एन.सिंह, श्री रूद्र नाथ मिश्रा (अधिवक्ता), मुकेश कुमार विश्वकर्मा (अधिवक्ता), राजेश उर्फ़ राजेश श्रीवास्तव (अधिवक्ता), रवि शंकर विश्वकर्मा एवं ब्लड बैंक के सभी कर्मी उपस्थित रहे। ब्लड बैंक, सरसुंदरलाल हॉस्पिटल, बी.एच.यू., वाराणसी का सहयोग सराहनीय और मानवता की सेवा में समार्पित रहा। ब्लड बैंक के सभी कर्मियों को काशी साई परिवार का कोटिश: धन्यवाद। 
नोट:- 
अगला रक्तदान आयोजन दिनांक 29-12-2013 को दोपहर 12:00 बजे से 02:00 बजे ब्लड बैंक, सरसुंदरलाल हॉस्पिटल, बी.एच.यू., वाराणसी में पुनः आयोजित है, रक्तदाता कृपया निम्न नम्बरों पर संपर्क कर थैलासीमिया रोगी बालक मास्टर रजत मिश्रा के लिए रक्तदान कर सकते हैं। 
पिता:- 
श्री रूद्र नाथ मिश्रा (अधिवक्ता)   
मोबाइल- 9336529585. 

अथवा
काशी साईं परिवार के प्रतिनिधि :-
श्री अंशुमान दुबे (अधिवक्ता)   
मोबाइल- 9335889403. 

रक्तदान 27-12-2013  के छायाचित्र
रक्तदान करते श्री डॉ. अमित पाण्डेय साथ में श्री रूद्र नाथ मिश्रा (अधिवक्ता)


श्री डॉ. अमित पाण्डेय व मास्टर रजत मिश्रा काशी साईं स्मृति चिन्ह के साथ
रक्तदान करते श्री अमित राय (अधिवक्ता) साथ में श्री रूद्र नाथ मिश्रा
(अधिवक्ता)


श्री अमित राय (अधिवक्ता) व मास्टर रजत मिश्रा काशी साईं स्मृति चिन्ह के साथ
रक्तदान करते श्री संजीव सिंह साथ में मास्टर रजत मिश्रा


मास्टर रजत मिश्रा, श्री संजीव सिंह व अंशुमान दुबे काशी साईं स्मृति चिन्ह के साथ
श्री अंशुमान दुबे, मास्टर रजत मिश्रा व श्री रूद्र नाथ मिश्रा (अधिवक्ता) काशी साईं स्मृति चिन्ह के साथ

Saturday, 19 May 2012

125 दिनों की तपस्या - गंगा है तंग :-

 गंगा के तट पर संत है तपस्या रत,
जनता भी है समर्थन में संग,
गली, महाल सब है गंगा के रंग,
कब जागोगे सत्ता वालो गंगा है तंग,
एक माँ का दूध पिया है,
एक माँ का नीर पिया है,
एक माँ के हो संग और,
एक माँ को करते हो तंग,
कब जागोगे सत्ता वालो गंगा है तंग ||

Saturday, 11 September 2010

ईद मुबारक

ईद के मुबारक
अवसर पर
काशी साईं परिवार
की तरफ से
सभी भारत वंशियो
को
ईद मुबारक

ढेरो शुभ कामनाये ।

जय साईं भारत

LOVE SAI, LIVE SAI.

Saturday, 1 August 2009

काशी साईं आज का विचार : भाग - 20

"प्रेम जीवन से भी श्रेष्ठ है।"
प्रार्थना क्या है?
प्रेम और समर्पण।
और, जहाँ प्रेम नहीं है, वहाँ प्रार्थना नहीं है।

प्रेम के स्मरण में एक अद्भुत घटना का उल्लेख है।

नूरी, रक्काम एवं अन्य कुछ सूफी फकीरों पर काफिर होने का आरोप लगाया गया था, और उन्हें मृत्यु दंड दिया जा रहा था।

जल्लाद जब नंगी तलवार लेकर रक्काम के निकट आया, तो नूरी ने उठकर स्वयं को अपने मित्र के स्थान पर अत्यंत प्रसन्नता और नम्रता के साथ पेश कर दिया। दर्शक स्तब्ध रह गए। हजारों लोगों की भीड़ थी। उनमें एक सन्नाटा दौड़ गया।

जल्लाद ने कहाः हे युवक, तलवार ऐसी वस्तु नहीं है, जिससे मिलने के लिए लोग इतने उत्सुक और व्याकुल हों। और फिर तुम्हारी अभी बारी भी नहीं आई है! और, पता है कि फकीर नूरी ने उत्तर में क्या कहा?

उसने कहा प्रेम ही मेरा धर्म है। मैं जानता हूँ कि जीवन, संसार में सबसे मूल्यवान वस्तु है, लेकिन प्रेम के मुकाबले वह कुछ भी नहीं है। जिसे प्रेम उपलब्ध हो जाता है, उसे जीवन खेल से ज्यादा नहीं है।

संसार में जीवन श्रेष्ठ है। प्रेम जीवन से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि वह संसार का नहीं, सत्य का अंग है।

और, प्रेम कहता है कि जब मृत्यु आए, तो अपने मित्रों के आगे हो जाओ और जब जीवन मिलता हो तो पीछे। इसे हम प्रार्थना कहते हैं। प्रार्थना का कोई ढाँचा नहीं होता है। वह तो हृदय का सहज अंकुरण है। जैसे पर्वत से झरने बहते हैं, ऐसे ही प्रेम-पूर्ण हृदय से प्रार्थना का आविर्भाव होता है।

Friday, 19 June 2009

काशी साईं आज का विचार : 19

"जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है और न किसी से कोई आकांक्षा रखता है, वास्तव में, वही संन्यासी है।" ......... वेद व्यास

चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...