Wednesday, 30 October 2019

तीन लोकों में न्यारी काशी में देवाधिदेव महादेव तो बसते ही हैं, इस नगरी को 11वें रुद्रावतार हनुमान का भी धाम बनाने का श्रेय जाता है गोस्वामी तुलसीदास को। संकटमोचन के रूप में उन्होंने तुलसीदास जी को यहीं दर्शन दिए:-

 

वाराणसी : मन मंदिर में भगवान श्रीराम को बसाए गोस्वामी तुलसीदास को हनुमत प्रभु का बाल रूप सदा ही भाया। मानस की रचना के दौरान सनातन समाज को सबल और जागृत बनाने में भी उन्हें प्रभु का यही रूप अधिक याद आया। उन्होंने मंदिरों के साथ अखाड़ों को जोड़कर समाज के शौर्य प्रकटीकरण का जतन किया। काशी के टोले-मोहल्लों में शौर्य नायक हनुमान के 12 मंदिरों का उन्होंने निर्माण कराया, जिनमें सात को बालरूप हनुमान से ही सजाया।

कागजी प्रमाणों का अभाव है, लेकिन इन मंदिरों के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा का भाव है। गंगा तट पर जहां यायावर तुलसी को स्थायी ठौर मिला, वहां उन्होंने दक्षिणमुखी हनुमत प्रतिमा स्थापित की। जीवन पर्यत वे यहीं उनके चरणों में बैठकर ध्यान लगाया।

तब नगर के वन क्षेत्र कर्णघंटा में भी तुलसीदास ने दक्षिणमुखी बाल रूप हनुमान की मूर्ति सजाई। पक्के महाल के राजमंदिर क्षेत्र में बूंदी राजघराने के परकोटा भवन पर गोस्वामीजी ने हनुमान मंदिर की जो स्थापित की, वह भी बालरूप, दक्षिणमुखी व एक विशाल वृक्ष के नीचे है।

दारानगर क्षेत्र के महामृत्युंजय मंदिर में गोस्वामीजी ने दो प्रतिमाओं की स्थापना की। एक मुख्य प्रांगण में दक्षिणमुखी बालरूप है। ग्रहादि दोषों से निवृत्ति के लिए मंदिर के पूरब पीपल के नीचे भी उन्होंने एक और प्रतिमा स्थापित की।

महामारी से भयाक्रांतों में आत्मबल जगाने के ध्येय से तुलसीदास ने प्रह्लादघाट में दक्षिणमुखी हनुमान की स्थापना की। यहां उनका अखाड़ा भी था। यह मंदिर मनसापूरण हनुमान के नाम से पूजित है। हनुमान फाटक क्षेत्र में युवकों को जागृत करने के उद्देश्य से गोस्वामीजी ने एक फीट के लघु हनुमान की प्रतिमा स्थापित की। नीचीबाग क्षेत्र में गोस्वामीजी ने वीरभाव में बालरूप हनुमान का मंदिर सजाया और मुद्रा अभयदाता की दी। मूर्ति के पैरों तले नरकासुर की प्रतिमा है।

धर्म परिवर्तन के आतंक के दौर में गोस्वामी जी ने कबीरचौरा में भी हनुमान की वीर भाव मुद्रा वाली प्रतिमा स्थापित की। अस्सी घाट पर प्रवास के दौरान दुर्गा मंदिर परिक्षेत्र में बनकटी मंदिर की स्थापना की। यहां की ख्याति सेनापति हनुमान के रूप में है। गोस्वामी जी द्वारा स्थापित बारहवीं प्रतिमा को लेकर मतभेद हैं। इसका अस्तित्व गोपाल मंदिर या मीरघाट माना जाता है।

तुलसीघाट पर चहुंदिश हनुमान:- तुलसीघाट का पूरा क्षेत्र चहुंदिश हनुमतमय है। अपने आवास प्रांगण में तुलसी ने हनुमत प्रभु की दक्षिणाभिमुख मूर्ति सजाई। बाद में अखाड़ा तुलसीदास के महंतों ने पूर्वाभिमुख, पश्चिमाभिमुख व उत्तराभिमुख हनुमान की मूर्तियां स्थापित कीं। माना जाता है कि बजरंगबली यहां से चारों दिशाओं पर नजर रखते हैं।

काशी में तुलसी का विरोध व सम्मान:- जनश्रुतियों और ग्रंथों से पता चलता है कि तुलसीदास को काशी के कुछ अनुदार पंडितों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था। रामचरितमानस की पाडुलिपि को नष्ट करने के भी प्रयास हुए। भगवान विश्वनाथ जी के मंदिर में पाडुलिपि रखी गई और मानस को विश्वनाथजी का समर्थन मिला। तब, विरोधी तुलसी के सामने नतमस्तक हुए।

Friday, 3 May 2019

मेरे राम को खण्डित करने वाले सदैव दण्डित होते हैं:-

 राम को खण्डित करने वाले सदैव दण्डित होते हैं। इस वाक्य से इस पोस्ट की शुरुआत कर रहा हूँ, क्योंकि यह सत्य है। इतिहास गवाह है, जिस किसी ने "राम-नाम" को खण्डित करने का प्रयास किया वह स्वयं खण्डित हो गया।

मैं सिर्फ उस इतिहास की बात करता हूँ जो मैंने अपने 44 साल के जीवन में देखा व सुना है।

***पहली घटना जिसने राम-नाम की राजनीति में ताला खुलवाया, उसका शरीर खण्ड-खण्ड हो गया।

***दूसरी घटना, जिसने राम-नाम पर रथयात्रा निकालकर राजनीति की, उनके प्रधान बनने का सपना तीन बार खण्ड-खण्ड हो गया।

***तीसरी घटना जिसका दायित्व था कि उसे राम-नाम की राजनीति को रोकना है, उसने ऐसा नहीं किया तो उसके ही लोगों ने उसे मरने के बाद राजघाट, दिल्ली के बाहर फेंक दिया।

इसलिए राम-नाम की राजनीति बंद करो और राम का नाम लेकर राम की जनता के लिए काम करो।

Tuesday, 20 November 2018

देवी देवताओं की आरती के बाद, क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र?

 हिंदू धर्म को मानने वाले श्रद्धालु मंदिरों में या घरों में होनी वाली दैनिक पूजा विधान में देवी देवताओं की आरती पूर्ण होने के बाद कुछ वैदिक मंत्रों का उच्चारण अनिवार्य रूप से करते है । सभी देवी-देवताओं की स्तुति के मंत्र भी अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी यज्ञ या पूजा समपन्न होता है, तो उसके बाद भगवान की आरती की जाती और आरती के पूर्ण होते ही इस दिव्य व अलौकिक मंत्र को विशेष रूप से बोला जाता है ।

कर्पूरगौरं मंत्र:-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।

- इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । इसका अर्थ इस प्रकार है- कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले । करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं । संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं । भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं । सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।

अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।

आखिर आरती के बाद यही मंत्र क्यों

- किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं । भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है । ये माना जाता है कि भगवान शिव जी शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी प्रवत्ति वाला है । लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य और सुंदर है । भगवान शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति । ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे, शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं । ऐसे शिवजी हमारे मन में शिव वास कर, मृत्यु का भय दूर करें ।

Monday, 15 October 2018

My Message to Sai Baba - "Aawaz Deke Hamen Tum Bulao" Sung by लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी

आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ 

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

अभी तो मेरी ज़िंदगी है परेशां

कहीं मर के हो खाक भी न परेशां

दिये की तरह से न हमको जलाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

मैं सांसों के हर तार में छुप रहा हूँ

मैं धड़कन के हर राग में बस रहा हूँ

ज़रा दिल की जानिब निगाहें झुकाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

ना होंगे अगर हम तो रोते रहोगे

सदा दिल का दामन भिगोते रहोगे

जो तुम पर मिटा हो उसे ना मिटाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ

मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ

Tuesday, 10 April 2018

कबीर

कबीर के literature काे भी तत्समय poor की संज्ञा दिया गया था। आज वर्षों बाद कबीर के विचार जीवित हैं परन्तु विरोधियों का ना ताे विचार रहा और ना ही उनका अस्तित्व।

कबीर कहते हैं-
चाल बकुल की चलत है, बहुरि कहावै हंस।
ते मुक्ता कैसे चुगे, पड़े काल के फंस।।
भावार्थ:-
जो बगुले के आचरण में चलकर, पुनः हंस कहलाते हैं वे ज्ञान - मोती कैसे चुगेगे ? वे तो कल्पना काल में पड़े हैं।
@KashiSai

Wednesday, 4 October 2017

कबीर के लोकप्रिय दोहे :: भाग 3

सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद॥1॥
अर्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति सुख में ईश्वर को याद नहीं करता हैं और केवल दुःख में भगवन को याद करता हैं तो कबीर के अनुसार इस संसार में उसके दुःख कोई नहीं हर सकता हैं. क्योकि प्रभु आनंदस्वरूप हैं।

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ 2 ॥
अर्थ : कबीर ने इस पंक्तियों में स्वयं को धन की मोहमाया से दूर रखने की बात कही हैं. कबीर कहते हैं कि ईश्वर मुझे केवल इतना ही धन देना जिससे मेरा गुज़ारा हो सके और मैं भूखा ना रहूं और ना ही मेरे घर आया कोई अतिथि भूखा जाए।

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट॥3॥
अर्थ : कबीर कहते हैं कि व्यक्ति को जब भी समय मिले उसे राम नाम रूपी धन लुट लेना चाहिए, यह प्राण अनिश्चित हैं, निकल जाने के बाद इसका पछतावा रह जायेगा।

Wednesday, 3 May 2017

कबीर के लोकप्रिय दोहे :: भाग 2

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥ 1 ॥
अर्थ :- गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥ 2 ॥
अर्थ :- कबीरदास कहते हैं कि मैं अपने गुरु पर प्रत्येक क्षण सैकड़ों बार न्यौछावर जाता हूँ जिसने मुझको बिना विलम्ब के मनुष्य से देवता कर दिया।

कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥ 3 ॥
अर्थ : कबीरदास ने इस दोहे में भीख और माला जपने का विरोध किया हैं. कबीर कहते हैं कि माला मन की फेरनी चाहिए और संसार में भीख मांगने से बुरा और कुछ नहीं हैं. यदि मन की माला फेरी जाए तो हरि मिल जाते हैं बस एक बार चरखें रूपी गले में रखकर देखना हैं।

चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...