"'तुम कहीं भी रहो, कुछ भी करो पर याद रखो कि तुम जो भी करते हो वह मुझे मालूम है। मैँ प्रत्येक के हृदय में हूँ और सबका आन्तरिक शासक हूँ। चराचर सृष्टि मुझसे ही आच्छादित है। मैं नियामक, नियंत्रक और दृश्य सृष्टि का सूत्रधार हूँ। मैं माता हूँ, समस्त प्राणियों का उद्गम हूँ। मैं सत्व, रज, तम तीनों गुणों का समत्व हूँ, इन्द्रयों तथा बुद्धि का संचालक हूँ और सृष्टि का रचयिता, पालक और संहारक हूँ। जो मुझमें अपना ध्यान केन्द्रित करेगा उसे कोई भी, कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचावेगा किन्तु जो मुझे भूलेगा, माया उसे आघात पहुँचावेगी। सभी जीव जन्तु तथा समस्त दृश्यमान सचराचर जगत मेरा ही शरीर और रूप है।' ठीक ऐसी ही घोषणा भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता के दसवें अध्याय में "विभूति योग" के अन्तर्गत की है।
परब्रह्म के अवतार साईं बाबा की यही स्तुति कर हम कृतार्थ हो जावें कि -
"ब्रह्मा दक्षः कुबेरो यम वरुनमरुद्रह्नि महेन्द्र रुद्राः
शैला जद्यः समुद्रा ग्रहगण मनुजा दैत्य गन्धर्व नागाः।
द्वीपा नक्षत्र तारा रवि वसु मुनयो व्योम भूरश्विनौ च
संलीना यस्य वपुषि स भगवान् पातु यो विश्वरूपः॥"
अर्थात्
"जिनके शरीर में ब्रह्मा, दक्ष, कुबेर, यम, वरुण, वायु, अग्नि, चन्द्र, इन्द्र, शिव, पर्वत, नदी, समुद्र, ग्रह, मनुष्य, दैत्य, गन्धर्व, नाग द्वीप, नक्षत्र, तारे, सूर्य, वसु, मुनि, आकाश, पृथ्वी और अश्वनीकुमार आदि सभी लीन हैं, वे विश्वरूप भगवान हमारा कल्याण करे।
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