परनिंदा एक बुराई है। इससे मनुष्य को बचना चाहिए। दूसरों की निंदा करने वाला इंसान सदा धोखे में रहता है और वह इससे किसी ओर का नुकसान नहीं करता बल्कि वह स्वयं ही पतन के मार्ग पर अग्रसर होता है।
निंदा ऐसा घोर पाप है, जो प्रभु से मनुष्य को दूर ले जाती है। दूसरों की निंदा करने वाला मनुष्य जीवन में कभी भी मानसिक शांति नहीं पाता है बल्कि वह सदैव दुखी, अशांत व परेशान रहता है। दूसरों की सफलता से उदाहरण लेते हुए अगर मनुष्य लगन व निष्ठा से कर्मयोग का रास्ता अपनाए, तो ऐसी कोई मंजिल नहीं है, जिसे इंसान नहीं पा सकता। इसलिए निंदा पर समय व्यर्थ करने के बजाय सकारात्मक सोच बनाकर अच्छे कार्यो की ओर मन लगाना चाहिए। भक्ति में पाखंड की जरूरत नहीं है, क्योंकि प्रभु को सच्चे हृदय वाले सरल भक्त ही पसंद हैं। द्वेष व ईष्र्या की भावना से ऊपर उठकर प्रेम की भावना को विकसित करना चाहिए। यह ही जीवन में सच्ची सफलता का आधार है। बुराई के रास्ते पर चलकर कुछ देर तो मानव को सफलता का भ्रम रह सकता है, लेकिन एक तो इन हालात में मन अशांत व भयग्रस्त रहता है, दूसरे अंत में पछताना ही पड़ता है। भगवान की भक्ति से पहले उसके द्वारा बनाए गए मनुष्य से प्रेम करना जरूरी है, क्योंकि प्रभु की नजर में हर मनुष्य समान है। चाहे वह कोई भी हो। मनुष्य, मनुष्य में भेद करना उचित नहीं है। हालांकि गुण-दोष के आधार पर मानव तुच्छ व श्रेष्ठ हो सकता है, मगर हमें प्रत्येक मनुष्य से प्रेम करना चाहिए।
भक्ति के लिए कोई समय निर्धारित नहीं होता और प्रभु का स्मरण किसी भी समय किया जा सकता है। सिर्फ सच्ची भावना होनी जरूरी है। आडंबरों से प्रभु को धोखा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि भक्ति में पाखंडों का कोई स्थान नहीं है। निंदा की भावना त्यागने से क्रोध व लोभ जैसी भावनाएं खुद ही मिट जाती हैं, क्योंकि ईष्र्या से पैदा हुई निंदा अनेक बुराइयों को जन्म देकर मनुष्य को पतन की राह पर अग्रसर कर देती है।
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उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...
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