Wednesday, 30 September 2009
तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब : मोमिन
कहीं साया मेरा पड़ा साहब
है ये बन्दा ही बेवफ़ा साहब
ग़ैर और तुम भले भला साहब
क्यों उलझते हो जुम्बिशे-लब से
ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब
क्यों लगे देने ख़त्ते-आज़ादी
कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब
दमे-आख़िर भी तुम नहीं आते
बन्दगी अब कि मैं चला साहब
सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरो-जफ़ा
जो किया सो भला किया साहब
किससे बिगड़े थे,किसपे ग़ुस्सा थे
रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब
किसको देते थे गालियाँ लाखों
किसका शब ज़िक्रे-ख़ैर था साहब
नामे-इश्क़े-बुताँ न लो 'मोमिन'
कीजिए बस ख़ुदा-ख़ुदा साहब
कठिन शब्दों के अर्थ:
ख़फ़ा: नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब: होंटो का हिलना, ख़त्ते-आज़ादी: आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़, दमे-आख़िर: अंतिम समय, ज़िक्रे-ख़ैर: बखान, नामे-इश्क़े-बुताँ: हसीनों के प्रेम का नाम
बीत गये दिन भजन बिना रे : संत कबीर
भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥
बाल अवस्था खेल गवांयो ।
जब यौवन तब मान घना रे ॥
लाहे कारण मूल गवाँयो ।
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥
कहत कबीर सुनो भई साधो ।
पार उतर गये संत जना रे ॥
साईं ने कहा है : भाग - 175
"अपने वचन का पालन करने के लिए मैं अपने जीवन को भी न्योछावर कर सकता हूँ।"
Tuesday, 29 September 2009
साईं ने कहा है : भाग - 174
"मानवता ही मनुष्य की सबुरी (धैर्य) है,
धैर्य धारण करने से समस्त पाप और मोह नष्ट हो जाते है।"
Monday, 28 September 2009
सुपने में साईं मिले : संत कबीर
सोवत लिया लगाए
आंख न खोलूं डरपता
मत सपना है जाए
साईं मेरा बहुत गुण
लिखे जो हृदय माहिं
पियूं न पाणी डरपता
मत वे धोय जाहिं
नैना भीतर आव तू
नैन झांप तोहे लेउं
न मैं देखूं और को
न तेही देखण देउं
नैना अंतर आव तू
ज्यौ हौं नैन झंपेउं
ना हौं देखूं और कूँ
ना तुम देखण देउं
कबीर रेख सिंदूर की
काजर दिया न जाइ
नैनू रमैया रमि रह्या
दूजा कहॉ समाइ
मन परतीत न प्रेम रस
ना इत तन में ढंग
क्या जानै उस पीवसू
कैसे रहसी रंग
अंखियां तो छाई परी
पंथ निहारि निहारि
जीहड़ियां छाला परया
नाम पुकारि पुकारि
बिरह कमन्डल कर लिये
बैरागी दो नैन
मांगे दरस मधुकरी
छकै रहै दिन रैन
सब रंग तांति रबाब तन
बिरह बजावै नित
और न कोइ सुनि सकै
कै सांई के चित
Sunday, 27 September 2009
माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ : संत कुम्भनदास
"माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ।
मेरे तो ब्रत यहै निरंतर, और न रुचि उपजाऊँ ॥
खेलन ऑंगन आउ लाडिले, नेकहु दरसन पाऊँ।
'कुंभनदास हिलग के कारन, लालचि मन ललचाऊँ ॥
साईं ने कहा है : भाग - 172
"कोई कितना भी दुखित और पीड़ित क्यो ना हो, जैसे ही वह मस्जिद की सीढियों पे पैर (चरण) रखता है वह सुखी हो जाता है।"
Saturday, 26 September 2009
देख जिऊँ माई नयन रँगीलो : संत कृष्णदास
"देख जिऊँ माई नयन रँगीलो।
लै चल सखी री तेरे पायन लागौं,
गोबर्धन धर छैल छबीलो॥
नव रंग नवल, नवल गुण नागर,
नवल रूप नव भाँत नवीलो।
रस में रसिक रसिकनी भौहँन,
रसमय बचन रसाल रसीलो॥
सुंदर सुभग सुभगता सीमा,
सुभ सुदेस सौभाग्य सुसीलो।
'कृष्णदास प्रभु रसिक मुकुट मणि,
सुभग चरित रिपुदमन हठीलो॥"
साईं ने कहा है : भाग - 171
"यदि कुछ मांगना है तो ईश्वर से मांगो, सांसारिक मान व उपाधियाँ त्याग दो,
ईश्वर की कृपा तथा अभयदान प्राप्त करने का प्रयास करो।"
Friday, 25 September 2009
सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल : संत छीतस्वामी
"सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल,
मिटिहैं जंजाल सकल निरखत सँग गोप बाल।
मोर मुकुट सीस धरे, बनमाला सुभग गरे,
सबको मन हरे देख कुंडल की झलक गाल॥
आभूषन अंग सोहे, मोतिन के हार पोहे,
कंठ सिरि मोहे दृग गोपी निरखत निहाल।
'छीतस्वामी' गोबर्धन धारी कुँवर नंद सुवन,
गाइन के पाछे-पाछे धरत हैं चटकीली चाल॥"
साईं ने कहा है : भाग - 170
"धनवान के लिए धन का महत्व तभी है, जब वह उसे धर्म और दान में कर्च करे।"
Thursday, 24 September 2009
मेरे देश के लाल : बालकवि बैरागी
साईं ने कहा है : भाग - 169
"अपनी चतुराई पर विश्वास कर तुम रास्ता भटक गए,
सही रास्ता दिखने के लिए पाठ प्रदर्शक गुरु आवश्यक है।"
Wednesday, 23 September 2009
भक्तन को कहा सीकरी सों काम : संत कुम्भनदास
"भक्तन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पन्हैया टूटी बिसरि गये हरि नाम॥
जाको मुख देखे अघ लागै करन परी परनाम॥
'कुम्भनदास' लाल गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम॥"
Tuesday, 22 September 2009
दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ : संत कबीर
साईं ने कहा है : भाग - 167
"मुझे ही अपनी दृष्टि, ध्यान और मनन का केन्द्र बना लो, तुम्हे बहुत लाभ होगा।"
Monday, 21 September 2009
इंशा जी उठो अब कूच करो : इंशा अल्लाह खां
वहशी को सुकूँ से क्या मतलब, जोगी का नगर में ठिकाना क्या।
इस दिल के दरीदा-दामन को देखो तो सही, सोचो तो सही,
जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली को फैलाना क्या।
शब बीती चांद भी डूब गया ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में,
क्यों देर गये घर आये हो सजनी से करोगे बहाना क्या।
उस हुस्न के सुच्चे मोती को हम देख सकें पर छू न सकें,
जिसे देख सकें पर छू न सकें वो दौलत क्या वो ख़ज़ाना क्या।
उस को भी जला दुखते हुए मन इक शोला लाल भभूका बन,
यूँ आँसू बन बह जाना क्या यूँ माटी में मिल जाना क्या।
जब शहर के लोग न रस्ता देखे क्यों वन में न जा विश्राम करे,
दीवानों की-सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या।
रहना नहिं देस बिराना है : संत कबीर
Sunday, 20 September 2009
मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै : संत कबीर
हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै।
हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।
सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले।
हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै।
तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै।
कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥
जार को बिचार कहा गनिका को लाज कहा : टोडर
गदहा को पान कहा आँधरे को आरसी।
निगुनी को गुन कहा दान कहा दारिदी को,
सेवा कहा सूम को अरँडन की डार सी।
मदपी की सुचि कहा साँच कहा लम्पट को,
नीच को बचन कहा स्यार की पुकार सी।
टोडर सुकवि ऎसे हठी ते न टारे टरे,
भावै कहो सूधी बात भावै कहो फारसी।
( Note : टोडर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है। )
साईं ने कहा है : भाग - 165
"जिसने ब्रम्ह को समर्पण कर दिया हो, वह सभी प्राणियों में ईश्वर का दर्शन करता है।"
Saturday, 19 September 2009
बहुरि नहिं आवना या देस : संत कबीर
साईं ने कहा है : भाग - 164
"राम और रहीम को एक मनो और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करो।"
Friday, 18 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 5
रहिमन मोम तुरंग चढ़ि, चलिबो पावक मांहि।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नांहि।।
रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट है जात।
नारायण हू को भयो, बावन आंगुर गात।।
रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार।
चोरी करि होरी रची, भई तनिक में छार।।
समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह।।
साईं ने कहा है : भाग - 163
"दूसरे के बारे में बुरा ना बोलो, बुरा ना सोचो और बुरा न सुनो।"
Thursday, 17 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 4
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसो ही फल दीन।।
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय।।
धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ई कौन है, जगत पिआसो जाय।।
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस।
महिमा घटि सागर की, रावण बस्यो पड़ोस।।
रुठे सुजन मनाइए, जो रुठै सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार।।
समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय।
सदा रहे नहिं एकसो, का रहिम पछिताय।।
साईं ने कहा है : भाग - 162
"चित की सुधि अति आवश्यक है, उसके अभाव में हमारे सभी आध्यात्मिक प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।"
Wednesday, 16 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 3
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥1॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥2॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥3॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥4॥
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥5॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥6॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥7॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥8॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥9॥
साईं ने कहा है : भाग - 161
"गरीबी अवल बादशाही, अमीरी से लाख सवाई, गरीबो का अल्लहा भाई।"
Tuesday, 15 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 2
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥1॥
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥2॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥3॥
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥4॥
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥5॥
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥6॥
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥7॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥8॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥9॥
साईं ने कहा है : भाग - 160
"जो ईश्वर कृपा से प्राप्त हो उसी में संतुष्ट रहो और लगन से कार्य करो।"
Monday, 14 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 1
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥
साईं ने कहा है : भाग - 159
"गुरु की शरण में आने के पश्चात् ही पापो का नाश होता है।"
Sunday, 13 September 2009
साईं ने कहा है : भाग - 158
"मैं एक दो बार तुम्हे चेतावनी दूंगा, आगया का पालन ना करने पर अंत में कठोर परिणाम भुगतना पड़ेगा।"
दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन : मलूकदास
तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन॥
आदर मान, महत्व, सत, बालापन को नेहु।
यह चारों तबहीं गए जबहिं कहा कछु देहु॥
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।
बात कहत ढर जात है, बालू की सी भीत॥
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास 'मलूका कह गए, सबके दाता राम॥
Saturday, 12 September 2009
साईं ने कहा है : भाग - 157
"शर्म करो....... ईष्या और शत्रुता की भावना का त्याग कर, संतुष्ट और प्रस्सन रहो।"
हमसे जनि लागै तू माया : मलूकदास
थोरेसे फिर बहुत होयगी, सुनि पैहैं रघुराया॥१॥
अपनेमें है साहेब हमारा, अजहूँ चेतु दिवानी।
काहु जनके बस परि जैहो, भरत मरहुगी पानी॥२॥
तरह्वै चितै लाज करु जनकी, डारु हाथकी फाँसी।
जनतें तेरो जोर न लहिहै, रच्छपाल अबिनासी॥३॥
कहै मलूका चुप करु ठगनी, औगुन राउ दुराई।
जो जन उबरै रामनाम कहि, तातें कछु न बसाई॥४॥
Friday, 11 September 2009
काशी साईं आज का विचार : भाग - 21
There is no greater Sadhana (spiritual exercise) than service. Service is the principle means for acquiring divine grace. Without being a devoted follower, you cannot become a worthy leader. If you are not willing to do work, you cannot attain divinity. Each one has to realize this truth. Service to society is the highest good. It is Truth, Right Conduct, Peace, Love and Non-violence that give happiness. These are the five principles that sustain life. Under no circumstances should these principles be given up. Render service to society with these principles in your mind, and with broad-minded dedication to the well-being of all.
JAI SAI RAM
साईं ने कहा है : भाग - 156
"हमारे कर्म ही सुख-दुःख का कारण होते है, इसलिए जैसी स्थिति हो उसे स्वीकार करो।'
दरद-दिवाने बावरे : मलूकदास
एक अकीदा लै रहे, ऐसे मन धीरा॥१॥
प्रेमी पियाला पीवते, बिदरे सब साथी।
आठ पहर यो झूमते, ज्यों मात हाथी॥२॥
उनकी नजर न आवते, कोइ राजा रंक।
बंधन तोड़े मोहके, फिरते निहसंक॥३॥
साहेब मिल साहेब भये, कछु रही न तमाई।
कहैं मलूक किस घर गये, जहँ पवन न जाई॥४॥
Thursday, 10 September 2009
कौन मिलावै जोगिया हो : मलूकदास
मैं जो प्यासी पीवकी, रटत फिरौं पिउ पीव।
जो जोगिया नहिं मिलिहै हो, तो तुरत निकासूँ जीव॥१॥
गुरुजी अहेरी मैं हिरनी, गुरु मारैं प्रेमका बान।
जेहि लागै सोई जानई हो, और दरद नहिं जान॥२॥
कहै मलूक सुनु जोगिनी रे,तनहिमें मनहिं समाय।
तेरे प्रेमकी कारने जोगी सहज मिला मोहिं आय॥३॥
महिमा साईं नाम की
Wednesday, 9 September 2009
अपनी भूल स्वीकार करना
परस्पर विरोध रहने के कारण अनबन चल रही हो, तो उस अनबन को समझौते द्घारा तय कीजिए और आगे के लिये ऐसा ढंग अपनाइए कि समस्या जटिल न होने पाएँ । अनबन का अंत यदि शीघ्र ही नहीं होता, तो वह धीरे-धीरे भीषण रुप धारण कर लेती है और फिर उसका समाधान बहुत कठिन हो जाता है ।
नाम हमारा खाक है : मलूकदास
खाकही ते पैदा किये, अति गाफिल गन्दे॥१॥
कबहुँ न करते बंदगी, दुनियामें भूले।
आसमानको ताकते, घोड़े चढ़ि फूले॥२॥
जोरू-लड़के खुस किये, साहेब बिसराया।
राह नेकीकी छोड़िके, बुरा अमल कमाया॥३॥
हरदम तिसको यादकर, जिन वजूद सँवारा।
सबै खाक दर खाक है, कुछ समुझ गँवारा॥४॥
हाथी घोड़े खाकके, खाक खानखानी।
कहैं मलूक रहि जायगा, औसाफ निसानी॥५॥
साईं ने कहा है : भाग - 154
"जो मैं देना चाहता हूँ लोग उसे लेने की कोशिश नही करते,
बल्कि वे मुझसे वह मंगाते है जो मैं उन्हें देना नही चाहता।"
Tuesday, 8 September 2009
Quotes of Swami Vivekananda
- "The one theme of the Vedanta philosophy is the search after unity. The Hindu mind does not care for the particular; it is always after the general, nay, the universal. "what is it that by knowing which everything else is to be known." That is the one search."
- Each soul is potentially divine. The goal is to manifest this divinity within, by controlling nature, external and internal. Do this either by work, or worship, or psychic control, or philosophy - by one, or more, or all of these - and be free. This is the whole of religion. Doctrines, or dogmas, or rituals, or books, or temples, or forms, are but secondary details."
- "Look upon every man, woman, and everyone as God. You cannot help anyone, you can only serve: serve the children of the Lord, serve the Lord Himself, if you have the privilege."
- "Mankind ought to be taught that religions are but the varied expressions of THE RELIGION, which is Oneness, so that each may choose the path that suits him best."
- It may be that I shall find it good to get outside of my body -- to cast it off like a disused garment. But I shall not cease to work! I shall inspire men everywhere, until the world shall know that it is one with God."
भारतमाता ग्रामवासिनी : सुमित्रानंदन पंत
धूल भरा मैला-सा आँचल
गंगा जमुना में आंसू जल
मिट्टी कि प्रतिमा उदासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन
अधरों में चिर नीरव रोदन
युग-युग के तम से विषण्ण मन
वह अपने घर में प्रवासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
तीस कोटी संतान नग्न तन
अर्द्ध-क्षुभित, शोषित निरस्त्र जन
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन
नतमस्तक तरुतल निवासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
स्वर्ण शस्य पर पद-तल-लुंठित
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित
क्रन्दन कम्पित अधर मौन स्मित
राहु ग्रसित शरदिंदु हासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
चिंतित भृकुटी क्षितिज तिमिरान्कित
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित
आनन श्री छाया शशि उपमित
ज्ञानमूढ़ गीता-प्रकाशिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
सफ़ल आज उसका तप संयम
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम
हरती जन-मन भय, भव तन भ्रम
जग जननी जीवन विकासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
साईं ने कहा है : भाग - 153
"कोई नही मरता अपनी अंतदृष्टि से देखो, तब तुम्हे ज्ञान होगा की तुम ईश्वर हो उनसे भीं नही।"
Monday, 7 September 2009
अरुण यह मधुमय देश हमारा : जयशंकर प्रसाद
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कंकुम सारा॥
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये, समझ नीड़ निज प्यारा॥
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा॥
संदर्भ: "भारत महिमा" से
साईं ने कहा है : भाग - 152
"किसी कुप्रवृति या पाखंड की भावना से प्रेरित होकर प्रशन नही करना चाइए,
केवल मोक्ष या आध्यात्मिक उनती के लिए ही प्रशन करना चाइए।"
Sunday, 6 September 2009
प्रसन्नता के सूत्र
उनके अनुसार संतुष्ट जीवन के लिए नौ बातें चाहिए -
- इतना स्वास्थ हो कि श्रम करने मे आनंद आए।
- इतना धन हो कि अपनी ज़रूरतें पूरी कर सको।
- इतनी ताकत हो कि मुसीबतों से मोर्चा लेकर उन्हें जीत सको।
- इतनी शालीनता हो कि अपने पाप स्वीकार कर सको और उन्हे छोड़ सको।
- इतना धीरज हो कि जब तक कुछ अच्छी चीज न निकले ,तब तक सतत् मेहनत करते रहो।
- इतनी उदारता हो कि अपने पड़ोसी मे कुछ अच्छाई देख सको।
- इतना प्यार हो कि उसकी बदौलत दूसरों के लिए उपयोगी और मददगार बन सको।
- इतनी श्रद्धा हो कि ईश्वर कि वस्तुओं को यथार्थ रूप दे सको।
- इतनी आशा हो कि भविष्य से संबंधित सारे चिंतापूर्ण डरों को दूर भगा सको.
साईं ने कहा है : भाग - 151
"काभी चिंता मत करो, उनकी आज्ञा और इच्छा के बिना पत्ता भी नही हिल सकता।"
Swami Vivekananda's Speeches : The World Parliament of Religions, Chicago
Saturday, 5 September 2009
कोई सुमार न देखौं : रैदास
जाकौं जेता प्रकासै, ताकौं तेती ही सोभा।।
हम ही पै सीखि सीखि, हम हीं सूँ मांडै।
थोरै ही इतराइ चालै, पातिसाही छाडै।।१।।
अति हीं आतुर बहै, काचा हीं तोरै।
कुंडै जलि एैसै, न हींयां डरै खोरै।।२।।
थोरैं थोरैं मुसियत, परायौ धंनां।
कहै रैदास सुनौं, संत जनां।।३।।
साईं ने कहा है : भाग - 150
"ज्ञानियों को केवल नमस्कार करना पर्याप्त नही, हमे सद्गुरु के प्रति अनन्य भावः से शरणागत होना चाइए।"
Friday, 4 September 2009
संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ : संत कबीर
साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ।
साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ।
साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जाति है बरियाँ।
साधनमां रैदास संत है, सुपच ऋषि सों भंगिया।
हिंदू-तुर्क दुई दीन बने हैं, कछू ना पहचानियाँ॥
Thursday, 3 September 2009
साईं ने कहा है : भाग - 148
"अन्न ही परम्ब्रम्ह है, वह सभी प्राणियों के जीवन का आधार है, भूखे रहकर कोई कार्य पूर्ण नही हो सकता।"
मोलना सुन कितेब की बातें (जीव हत्या ना करें) : संत कबीर
मोलना सुन कितेब की बातें
जिस बकरी का दूध पियो तुम,
सो तो मातु कि नाते
उस बकरी का गर्दन काटो,
अपनों हाथ छुरा ते
काम तो करो कसाई का औ,
पाक करो कलमा ते
यह मत उलटी कौन सिखाई,
अहमक नहीं लजाते
एक खुदा का सकल पसारा,
कीट पतंग जहां ते
दूजी कहो कहाँ ते आया,
ता पैर हमें खिझाते
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
ये पद है निर्बाते
एक नानिक जिह्वा के कारण,
कुर करम करि घाते
मोलना सुन कितेब की बातें।
Wednesday, 2 September 2009
वृक्षन की मति ले रे मना (वृक्षों सा सवभाव) : संत कबीर
दृढ़ आसन मनसा नहीं डोलै
सुमिरन में चित दे रे मना
मेघ भिगावै पवन झकोरै
हर्ष शोक नहीं ले रे मना
उष्ण शीत सहे शिर ऊपर
पक्षिन को सुख दे रे मना
काटनहार से बैर भाव नहीं
सींचे स्नेह न है रे मना
जो कोई पत्थर फ़ेंक के मारे
ऊपर से फल दे रे मना
तन मन धन सब परमारथ में
लग्यो रहे नित नेह रे मना
कहे कबीर सुनो भाई साधो
सदगुरु दर्शन ले रे मना
साईं ने कहा है : भाग - 147
"केवल मैं ही नही बल्कि मेरी समाधी भी उन लोगो से बात करेगी,
जो मुझे अपना एक मात्र आधार समझते है।"
Tuesday, 1 September 2009
साईं ने कहा है : भाग - 146
"परिश्रम का मूल्य चुकाए बिना किसी से कार्य नही करना चाहिए, कार्य कराने वाले को उसके श्रम का तुंरत निपटारा कर उदार ह्रदय से मजदूरी देनी चाइए।"
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो? : संत कबीर
चंदन काठ के बनल खटोला
ता पर दुलहिन सूतल हो।
उठो सखी री माँग संवारो
दुलहा मो से रूठल हो।
आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा
नैनन अंसुवा टूटल हो।
चार जने मिल खाट उठाइन
चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो।
कहत कबीर सुनो भाई साधों
जग से नाता छूटल हो।
चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...
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संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ। साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ। साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ। साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जा...
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काशी साईं फाउंडेशन के अंशदान रुपये 2,100/- एवं निवेदन पत्र दिनांक 25-09-2013 पर जिलाधिकारी वाराणसी ने टाउन हाल स्थित "भारत के राष्ट...
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भगत देश का - शहीदेआजम भगत सिंह को समर्पित