चेष्टा यह करनी चाहिये कि मतभेद की नौबत ही न आने पाए । अपनी ओर से कोई ऐसी बात मत आने दो जिससे कोई विवाद हो जाए, बल्कि दूसरी ओर से होने वाले विवाद को भी शांतिपूर्वक निबटा देना ही बुद्घिमानी है । अपने द्घारा हुई भूल को तुरंत स्वीकार कर लीजिये । आपको इस स्पष्टवादिता और आदर्श मनोवृत्ति का दूसरों पर अवश्य ही प्रभाव पड़ेगा । यदि आप भूल करके भी उसे स्वीकार नहीं करते तो दूसरों पर उसकी गलत प्रतिक्रिया होगी और क्षमाभाव के बजाय मन में भ्रांत धारणा बनी रहेगी ।
परस्पर विरोध रहने के कारण अनबन चल रही हो, तो उस अनबन को समझौते द्घारा तय कीजिए और आगे के लिये ऐसा ढंग अपनाइए कि समस्या जटिल न होने पाएँ । अनबन का अंत यदि शीघ्र ही नहीं होता, तो वह धीरे-धीरे भीषण रुप धारण कर लेती है और फिर उसका समाधान बहुत कठिन हो जाता है ।
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