Thursday, 31 December 2009
मोको कहां ढूढे रे बन्दे : कबीर (Kabir)
मैं तो तेरे पास में
ना तीर्थ मे
ना मूर्त में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में
ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में
ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किर्या कर्म में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में
नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालाश में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूँ विश्वास में
English translation by Gurudev Rabindranath Tagore:
O Man, where dost thou seek Me?
Lo! I am beside thee.
I am neither in temple nor in mosque
I am neither in Kaaba nor in Kailash
Neither am I in rites and ceremonies,
nor in Yoga and renunciation.
If thou art a true seeker,
thou shalt at once see Me
thou shalt meet Me in a moment of time.
Kabîr says, "O Sadhu! God is the breath of all breath."
Saturday, 26 December 2009
अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई : अमीर खुसरो
जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।
छाप तिलक सब छीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रिजना
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
प्रेम वटी का मदवा पिलाय के मतवारी कर दीन्हीं रे
मोसे नैंना मिलाई के।
गोरी गोरी बईयाँ हरी हरी चूरियाँ
बइयाँ पकर हर लीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
खुसरो निजाम के बल-बल जइए
मोहे सुहागन किन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
ऐ री सखी मैं तोसे कहूँ, मैं तोसे कहूँ, छाप तिलक....।
Sunday, 20 December 2009
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार : निदा फ़ाज़ली
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान
Friday, 18 December 2009
भोजपुर : नागार्जुन ( भाग - 4 )
एक–एक दिल छूकर देखा
इन सबमें तो वही आग है,
ऊर्जा वो ही...
चमत्कार है इस माटी में
इस माटी का तिलक लगाओ
बुद्धू इसकी करो वंदनायही अमृत है¸
यही चंदनाबुद्धू इसकी करो वंदना
यही तुम्हारी वाणी का कल्याण करे
गीयही मृत्तिका जन–कवि में अब प्राण भरे
गीचमत्कार है इस माटी में...
आओ, आओ, आओ, आओ!
तुम भी आओ, तुम भी आओ
देखो, जनकवि, भाग न जाओ
तुम्हें कसम है इस माटी की
इस माटी की/ इस माटी की/ इस माटी की
Wednesday, 16 December 2009
जो नर दुख में दुख नहिं मानै : नानकदेव
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह अभिमाना।
हरष शोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि के, जग तें रहै निरासा।
काम, क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं, तिन्ह यह जुगुति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंद सों, ज्यों पानी सों पानी।।
Sunday, 13 December 2009
जपु जी : नानकदेव
जिन सेविया तिन पाइया मानु, नानक गाविए गुणी निधानु॥
गाविये सुणिये मन रखि भाउ, दु:ख परिहरि सुख घर लै जाइ॥
गुरुमुखि नादं गुरुमुखि वेदं, गुरुमुखि रहिया समाई॥
गुरु ईसरू गोरखु बरमा, गुरु पारबती माई॥
जे हउ जाणा आखा नाहीं, कहणा कथनु न जाई।
गुरु इक देइ बुझाई।
सभना जीआ का इकु दाता, सोमैं बिसरि न जाई॥
सुणिये सतु संतोखु गिआनु, सुणिये अठि सठि का इसनानु।
सुणिये पढि-पढि पावहि मानु, सुणिये लागै सहजि धियानु॥
'नानक भगताँ सदा बिगासु, सुणिये दु:ख पाप का नासु॥
असंख जप, असंख भाउ, असंख पूजा असंख तप ताउ॥
असंख गरंथ मुखि वेदपाठ, असंख जोग मनि रहहिं उदास॥
असंख भगत गुण गिआन विचार, असंख सती असंख दातार॥
असंख सूर, मुँह भख सार, असंख मोनी लिव लाइ तार॥
कुदरति कवण कहा बिचारु, बारियआ न जावा एक बार॥
जो तुधु भावै साईं भली कार, तू सदा सलामति निरंकार॥
Friday, 11 December 2009
भोजपुर : नागार्जुन (भाग - 3 )
यहाँ कब्र है पार्लमेंट की
भगतसिंह ने नया–नया अवतार लिया है
अरे यहीं पर
अरे यहीं पर
जन्म ले रहे
आजाद चन्द्रशेखर भैया भी
यहीं कहीं वैकुंठ शुक्ल हैं
यहीं कहीं बाधा जतीन हैं
यहां अहिंसा की समाधि है...
Tuesday, 8 December 2009
को काहू को भाई : नानकदेव
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥
धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
Sunday, 6 December 2009
दुनिया : गुलाब खंडेलवाल
यह तो एक पोली बांसुरी है
जिसे आप चाहे जैसे बजा सकते हैं,
चाहे जिस सुर से सजा सकते हैं,
प्रश्न यही है,
आप इस पर क्या गाना चाहते हैं!
हंसना, रोना या केवल गुनगुनाना चाहते हैं!
सब कुछ इसी पर निर्भर करता है
कि आपने इसमें कैसी हवा भरी है,
कौन-सा सुर साधा है-
संगीत की गहराइयों में प्रवेश किया है
या केवल ऊपरी घटाटोप बांधा है,
यों तो हर व्यक्तिअपने तरीके से ही जोर लगाता है,
पर ठीक ढंग से बजानायहां बिरलों को ही आता है,
यदि आपने सही सुरों का चुनाव किया है
और पूरी शक्ति से फूंक मारी
तो बांसुरी आपकी उंगलियों के इशारे पर थिरकेगी,
पर यदि आपने इसमें अपने हृदय की धडकनन
हीं उतारी हैतो जो भी आवाज निकलेगी,
अधूरी ही निकलेगी।
Friday, 4 December 2009
भोजपुर : नागार्जुन (भाग - 2 )
पटना–दिल्ली मत जाने दो
भूमिपुत्र के संग्रामी तेवर लिखने दो
पुलिस दमन का स्वाद मुझे भी तो चखने दो
मुन्ना, मुझे पास आने दो
पटना–दिल्ली मत जाने दो
Thursday, 3 December 2009
झूठी देखी प्रीत : नानकदेव
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥
Wednesday, 2 December 2009
Tuesday, 1 December 2009
भोजपुर : नागार्जुन (भाग - 1 )
यही आग मैं खोज रहा था
यही गंध थी मुझे चाहिए
बारूदी छर्रें की खुशबू!
ठहरो–ठहरो इन नथनों में इसको भर लूँ...
बारूदी छर्रें की खुशबू!
भोजपुरी माटी सोंधी हैं,
इसका यह अद्भुत सोंधापन!
लहरा उठ्ठीकदम–कदम पर,
इस माटी परमहामुक्ति की अग्नि–गंध
ठहरो–ठहरो इन नथनों में इसको भर लूँ
अपना जनम सकारथ कर लूँ!
Sunday, 29 November 2009
Friday, 27 November 2009
आतंकवाद से लड़ने की पहल : 1
Thursday, 26 November 2009
कबीर ने कहा है: भाग - 23
"कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
ना काहू से बैर ज्ञान की अलख जगावे
भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे
बीच सड़क के मांहि झूठ को फोड़े भंडा
बिन पैसे बिन दाम ज्ञान का मारै डंडा।"
शहीद की माँ : हरिवंशराय बच्चन
श्री बच्चन जी की यह कविता 23/11/2007 (उत्तर प्रदेश कोर्ट ब्लास्ट) व 26/11/2008 (मुंबई हमला) में शहीद जवानों व भारतीयों को व उनके परिवार को शत शत नमन के साथ समर्पित है:-
इसी घर से
एक दिन
शहीद का जनाज़ा निकला था,
तिरंगे में लिपटा,
हज़ारों की भीड़ में।
काँधा देने की होड़ में
सैकड़ो के कुर्ते फटे थे,
पुट्ठे छिले थे।
भारत माता की जय,
इंकलाब ज़िन्दाबाद, (2009 में शायद यह होना चहिये "अमर शहीद जवान ज़िन्दाबाद")
अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद (2009 में शायद यह होना चहिये "आतंकवाद व भ्रष्टाचार मुर्दाबाद")
के नारों में शहीद की माँ का रोदन
डूब गया था।
उसके आँसुओ की लड़ी
फूल, खील, बताशों की झडी में
छिप गई थी,
जनता चिल्लाई थी-
तेरा नाम सोने के अक्षरों में लिखा जाएगा।
गली किसी गर्व से दिप गई थी।
इसी घर से
तीस बरस बाद
शहीद की माँ का जनाजा निकला है,
तिरंगे में लिपटा नहीं,
(क्योंकि वह ख़ास-ख़ास
लोगों के लिये विहित है)
केवल चार काँधों पर
राम नाम सत्य है
गोपाल नाम सत्य है
के पुराने नारों पर;
चर्चा है, बुढिया बे-सहारा थी,
जीवन के कष्टों से मुक्त हुई,
गली किसी राहत सेछुई छुई।
Thursday's Sai Vani: Part - 1
"God is the master, None else is the master. His actions are supernatural, invaluable & full of wisdom."
Wednesday, 25 November 2009
काहे ते हरि मोहिं बिसारो : तुलसीदास
जानत निज महिमा मेरे अघ, तदपि न नाथ सँभारो॥१॥
पतित-पुनीत दीन हित असुरन सरन कहत स्त्रुति चारो।
हौं नहिं अधम सभीत दीन ? किधौं बेदन मृषा पुकारो॥२॥
खग-गनिका-अज ब्याध-पाँति जहँ तहँ हौहूँ बैठारो।
अब केहि लाज कृपानिधान! परसत पनवारो फारो॥३॥
जो कलिकाल प्रबल अति हो तो तुव निदेस तें न्यारो।
तौ हरि रोष सरोस दोष गुन तेहि भजते तजि मारो॥४॥
मसक बिरंचि बिरंचि मसक सम, करहु प्रभाउ तुम्हारो।
यह सामरथ अछत मोहि त्यागहु, नाथ तहाँ कछु चारो॥५॥
नाहिन नरक परत मो कहँ डर जद्यपि हौं अति हारो।
यह बड़ि त्रास दास तुलसी प्रभु नामहु पाप न जारो॥६॥
Tuesday, 24 November 2009
प्यार और ध्यान
Paralysed, speech affected, Advocate Mishra back in court
Manish Sahu / Tags : Mishra back in court / Posted: Monday , Nov 23, 2009 at 0544 hrs Lucknow: / on .indianexpress.com <http://www.indianexpress.com/news/paralysed-speech-affected-advocate-mishra-back-in-court/545032/0>
Two years after he was crippled in the bomb blast that rocked the Varanasi local court complex on November 23, 2007, advocate Vashisht Kumar Mishra has started picking up the pieces.
Though he needs help to stand and walk, Mishra recently began attending the court. Inside the courtroom, his juniors argue cases under his guidance as he remains seated.
With the lower half of his body affected by paralysis, the explosion had also caused disorder in his nervous system — his teeth keeps chattering causing him oral injuries. To prevent it, he stuffs his mouth with pads that prevent him from talking. But slowly and steadily, his clients are returning to him — a sign that makes him hopeful about life.
“One of my colleagues, who lives close to my place, takes me to the court every morning and drops me home,” says 48-year-old Mishra. He has to make regular visits to the Banaras Hindu University Hospital and Lucknow-based Vivekanand Hospital for treatment, which includes physiotherapy.
For Mishra and his family, the worst is over and for the first time in two years, they are hopeful that he would be leading a normal life.
Since Mishra was the sole breadwinner, the injury and long treatment had hit his family hard. His daughters — Pratika Mishra, Neharika and Vartika — had to discontinue their studies. “Since there was no help, we started taking tuitions at home,” says Pratika. “Our savings were spent, I had to sell my jewellery and our ancestral land in the village to pay hospital bills,” says Mishra’s wife Urmila.
Though the government had promised to meet the medical expenses of all the victims of the court blasts, the family has received only the initial Rs 50,000 — which was spent within a month. The total medical cost that Mishra had to bear now amounts to Rs 4 lakh.
Despite submitting his bills to Varanasi District Magistrate Ajay Upadhyay and making several rounds to government offices, the family’s wait for money continues.
When The Indian Express asked about the status of Mishra’s medical bills, Upadhyay said: “We have forwarded all the bills to the state government and I have sent reminders too.”
Nevertheless, the family is getting on. “I have now started contributing money to the house. I have asked my daughters to once again start their studies,” says Mishra. While Pratika and Neharika is pursing their Masters in botany and physics, the youngest, Vartika is doing her graduation in commerce.
For Mishra, the blast was very tragic. Not only because of his own injury but also because he saw his clerk, Ajay Pandey, junior attorney Brahm Prakash Sharma and seven others die.
He was so badly injured in the blast that he slipped into coma for 28 days and had to stay in hospital for six months.
Monday, 23 November 2009
Saturday, 21 November 2009
Friday, 20 November 2009
पैगम्बर
Thursday, 19 November 2009
कबीर ने कहा है: भाग - 22
"चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय
साबित बचा न कोय लंका को रावण पीसो
जिसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो
कहिते दास कबीर बचो न कोई तपधारी
जिन्दा बचे ना कोय पीस डाले संसारी।"
Wednesday, 18 November 2009
Tuesday, 17 November 2009
श्री साईं अमृत
सुखदायक सिद्ध साईं के नाम का अमृत पी
दुख: से व्याकुल मन तेरा भटके ना कभी
थामे सब का हाथ वो, मत होई ये भयभीत
शिरडी वाला परखता संत जनों की प्रीत
साई की करुणा के खुले शत-शत पावन द्वार
जाने किस विध हो जाये तेरा बेडा पार
जहाँ भरोसा वहाँ भला शंका का क्या काम
तु निश्चय से जपता जा साई नाम अविराम
ज्योर्तिमय साई साधना नष्ट करें अंधकार
अंतःकरण से रे मन उसे सदा पुकार
साई के दर विश्वास से सर झुका नही इक बार
किस मुँह से फिर मांगता क्या तुझको अधिकार
पग – पग काँटे बोई के पुष्प रहा तू ढूंढ
साई नाम के सादे में ऐसी नही है लूट
मीठा – मीठा सब खाते कर-कर देखो थूक
महालोभी अतिस्वार्थी कितना मूर्ख तू
न्याय शील सिद्ध साई से जो चाहे सुख भी
उसके बन्दो तू भी न्याय तो करना सीख
परमपिता सत जोत से क्यूं तूं कपट करे
वैभव उससे मांग कर उसे भी श्रद्धा दे
साई तेरी पारबन्ध के बदले है सत्यालेक
कभी मालिक की ओर तू सेवक बनकर देख
छोड़ कर इत उत छाटना भीतर के पट खोल
निष्ठा से उसे याद कर मत हो डाँवाडोल
साई को प्रीतम कह प्रीत भी मन से कर
बीना प्रीत के तार हिले मिले ना प्रिय से वर
आनन्द का वो स्त्रोत है करुना का अवतार
घट घट की वो जानता महा योगी सुखकार।
Sunday, 15 November 2009
मुँशी प्रेमचन्द का जीवन परिचय (Premchand's Biography)
Saturday, 14 November 2009
HAZRAT NIZAMUDDIN
Nizamuddin travelled to Delhi and made his asram at now known as Nizamuddin. His many devotees included the rich, poor, learned, illiterate, villagers, soldiers, Hindus and Muslims. His kitchen supplied food to thousands of people every day.Provisions for the kitchen were not kept for than a week. The Shaikh ate rarely, tearfully confessing the trouble he had swallowing food when there were countless people starving in Delhi.
One hot day in summer, some houses in the neighbourhood caught fire. Barefooted, the Shaikh rushed to the site, standing there until the fire was completely doused. He personally counted the houses that had been burnt and appointed his deputy to compensate the affected families with two silver coins, food and water.
Nizamuddin believed that although many ways to lead to the God, none was more effective than bringing happiness to the human heart. The shaikh also taught that happiness was not in amazing wealth but distributing it. The Shaikh also preached that revenge is the law of jungle."If a man puts a thorn in your way and you also put thorn in his way, there will be thorns everywhere."
Nizamuddin desired to be buried under the open sky.But Sultan Mohammad Bin Tughlaq built a dome over his grave. Hearing the loss of his mentor on returning from Bengal, his devotee, the poet Amir Khusrau, tore his clothes, blackened his face and re- cited his last verse,
"Gori sove sej per much par dhar khes
chal Khusrau ghar aapne, rain bhare sab des"
Friday, 13 November 2009
जो बीत गई सो बात गयी : हरिवंशराय बच्चन
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फ़िर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियां
मुरझाईं कितनी वल्लरियां
जो मुरझाईं फ़िर कहां खिली
पर बोलो सूखे फ़ूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फ़ूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
Thursday, 12 November 2009
कबीर ने कहा है : भाग - 21
"आया है किस काम को किया कौन सा काम
भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम
कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी
झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी
कहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारी
मालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी।"
Tuesday, 10 November 2009
आज़ादी के दीवाने : चन्द्रशेखर आजाद
एक बार भगतसिंह ने बातचीत करते हुए चन्द्रशेखर आजाद से कहा, ‘पंडित जी, हम क्रान्तिकारियों के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।'
चन्द्रशेखर सकते में आ गए और कहने लगेल, ‘पार्टी का कार्यकर्ता मैं हूँ, मेरा परिवार नहीं। उनसे तुम्हें क्या मतलब? दूसरी बात, ‘उन्हें तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं है और न ही मुझे जीवनी लिखवानी है। हम लोग नि:स्वार्थभाव से देश की सेवा में जुटे हैं, इसके एवज में न धन चाहिए और न ही ख्याति।
आजाद :-
तुम्हारा नाम?
'आजाद'
बाप का नाम?
'स्वाधीनता'
घर?
'जेलखाना!’
अँग्रेज जज गुस्से से दांत पिसने लगा। अदालत में पेश किया गया, यह निडर नौजवान था - अमर शहीद 'चन्द्रशेखर आजाद।'
Monday, 9 November 2009
Saturday, 7 November 2009
मौत तू एक कविता है : गुलज़ार
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
(इस कविता को हिन्दी फ़िल्म "आनंद" में डा. भास्कर बैनर्जी के लिये लिखा गया था। इस चरित्र को फ़िल्म में अमिताभ बच्चन ने निभाया था)
Thursday, 5 November 2009
कबीर ने कहा है : भाग - 20
"माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो।"
Wednesday, 4 November 2009
Tuesday, 3 November 2009
मुझको भी तरकीब सिखा कोई, यार जुलाहे : गुलज़ार
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ
फिर से बाँध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गाँठ गिरह बुनतर की
देख नहीं सकता है कोई
मैंने तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे
Sunday, 1 November 2009
Saturday, 31 October 2009
Vivekananda Quote - 11
Conversation at the Brooklyn Ethical Society, USA. Complete Works, 5.313.
Friday, 30 October 2009
Thursday, 29 October 2009
Vivekananda Quote - 10
From notes discovered among Swami Vivekananda's papers. He evidently intendedto write a book and jotted down these points for the work. Complete Works, 5:430
Wednesday, 28 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 204
"मेरे बिना भक्त के लिए संपूर्ण विश्व ही उजाड़ है, वह केवल मेरी कथाओ का ही गुणगान करते है।"
Vivekananda Quote - 9
Retreat given at the Thousand Island Park, USA. June 25, 1895. Complete Works, 7.13
Tuesday, 27 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 203
"प्रेम और श्रद्धा भाव से किया गया, केवल एक नमस्कार ही प्रयाप्त है।"
Vivekananda Quote - 8
Interview, October 23, 1895. Complete Works, 5: 187-88.
Monday, 26 October 2009
साईं नामावली:-
१- अन्तकमर्दन साईं नाथ.
२- अंतसहाय साईं नाथ.
३- आप्रमेया साईं नाथ.
४- अमितपराक्रम साईं नाथ.
५- आनंदामृत साई नाथ.
६- आश्रित रक्षक साई नाथ.
७- सहिर्दी वासा साई नाथ.
८- श्री हरि रूपा साई नाथ.
९- द्वान्द विनाशा साईं नाथ.
१०- द्वारका वासा साईं नाथ.
११- तत्त्व बोधक साईं नाथ.
१२- दक्षिणा मूर्ति साईं नाथ.
१३- धर्म सुपालन साईं नाथ.
१४- दारिद्र नाशन साईं नाथ.
१५- दिव्या गुणालय साईं नाथ.
१६- तीर्थ पादा साईं नाथ.
१७- नित्यानन्दा साईं नाथ.
१८- निर्मल रूपा साईं नाथ.
१९- निर्जित कामा साईं नाथ.
२०- नित्य महोत्सव साईं नाथ.
२१- भक्त वत्सल साईं नाथ.
२२- भगवत प्रिय साईं नाथ.
२३- पुराण पुरुषा साईं नाथ.
२४- पुण्य शलोका साईं नाथ.
२५- संकट हरणा साईं नाथ.
२६- सर्व मताश्रय साईं नाथ.
२७- सच्चिदानन्दा साईं नाथ.
२८- समर्थ सदगुरु साईं नाथ.
साईं ने कहा है : भाग - 202
"मुझे ही अपने विचारो व इच्छाओं का लक्ष्य बनाओ, तुम्हे परमार्थ की प्राप्ति होगी।"
Vivekananda Quote - 7
Class on Karma Yoga. New York, January 3, 1896. Complete Works, 1.93.
Sunday, 25 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 201
"मस्जिद माई अपना ऋण मांगती है, इसलिए देनेवाला अपना ऋण चुकता कर मुक्त हो जाते है।"
Vivekananda Quote - 6
Conversation at the Brooklyn Ethical Society, USA. Complete Works, 5: 312-13.
Saturday, 24 October 2009
Friday, 23 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 199
"दानी दान देता है और भविष्य में सुंदर उपज का बीजारोपण करता है।"
Thursday, 22 October 2009
साईं तेरी नोकरी मुझे चाहिए:-
तेरी नोकरी मुझे चाहिए
हे साईं अभिराम चाकर मुझे बना लो,दे दो
श्री चरणों में स्थान
ड्यूटी मुझको देदो
बचा समये जो इस जीवन का
निज सेवा में लेलो
वेतन में तुम मुझको देना
श्रदा और सबुरी
इतना वेतन हो की स्वामी
तुमसे न हो दुरी
बीमारी के छुट्टी (Sick Leave) मुझे नहीं चाहिए
अपने नाम कर लेना
किराया भत्ता व महगाई भत्ता (T.A. & D.A.) जब हो जाये
कभी ड्यू जो मेरा
शिर्डी धाम का लगवा देना
साईं तुम की फेरा
उन्नति (Appraisal) के समये में दाता
मेरे दोष निरखना
लेश मात्र भी कमी जो पाओ
बर्खास्त (Demotion) चाहे करना
जैसे कर्म हो मेरे,वैसे
फल से झोली भरना
बोनस (Bonus) में मुझको दे देना
दर्शन अपना प्यारा
तेरी नोकरी में ही बीते
मेरा जीवन सारा
पदौन्नति (Promotion) जब भी करना चाहो
तब इतना ही करना
भक्ति की ऊँची सीढ़ी पर
साईं मुझको धरना
सेवा से अवकाश (Retirement) का समये जो आवे
तुम खुद ही आ जाना
इस जिव को दाता अपने संग
तुम्ही ले जाना
अर्जी मैंने डाला है, तुम
इस पर करो विचार
तेरी नोकरी पा जाऊँ तो
हो जावे उद्धार
साईं ने कहा है : भाग - 198
"पिछले जन्मो के कर्मफल को भोग लेना ही मुक्ति का साधन है।"
Vivekananda Quote - 5
Retreat given at the Thousand Island Park, USA. June 25, 1895. Complete Works, 7.13.
Wednesday, 21 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 197
"द्वारकामाई अपने बच्चो को हर प्रकार कि खतरे व चिंता से दूर रखती है।"
Vivekananda Quote - 4
Letter to Sarala Ghoshal, Editor of Bharati. Written from Darjeeling on April 6, 1897. Complete Works,5.126-27.
Tuesday, 20 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 196
"जो प्रेम और भक्ति के साथ ईश्वर का ध्यान करते है, प्रभु उनकी सदा सहायता करते है।"
Vivekananda Quote - 3
From notes discovered among Swami Vivekananda's papers. He evidently intended to write a book and jotted down these points for the work. Complete Works, 5:429.
Monday, 19 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 195
"जो व्यक्ति अपनी बुद्धि द्वारा मन को वश में कर लेते है, वे अंत में लक्ष्य प्राप्त कर विष्णु लोक में पहुच जाते है।"
Vivekananda Quote - 2
Class on Karma Yoga. New York, January 3, 1896. Complete Works, 1.93.
Sunday, 18 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 193
"अहंकारी और विषयो में लिप्त व्यक्ति पर गुरु के उपदेशो तथा शिक्षा का कोई प्रभाव नही पड़ता।"
Vivekananda Quote - 1
Saturday, 17 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 192
"धन के प्रति प्रेम, दुःख का गहरा भवर है, केवल इच्छा रहित व्यक्ति इस भवर को पर कर सकता है।"
Friday, 16 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 191
"आत्मानुभूति ना तो बुद्धि द्वारा और ना सूक्ष्म वेद अध्यन द्वारा सम्भव है, जिनपर ईश्वर कृपा होती है, केवल वे ही इसे प्राप्त करते है।"
Thursday, 15 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 190
"आत्मज्ञान गूढ़ और रहस्यमय है, केवल अपने प्रयत्नं से उसकी प्राप्ति सम्भव नही, सिद्ध गुरु की सहायता परम आवश्यक है।"
Wednesday, 14 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 189
"मैं शरीर हूँ एक भ्रम है और यही बंधन का कारण है, जीवन का धेय प्राप्त करने के लिए इस धारणा को त्याग कर दो।"
Tuesday, 13 October 2009
Monday, 12 October 2009
आज़ादी के दीवाने : रामप्रसाद बिस्मिल
शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा -
"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।"
यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रो बार भी।तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।।हे ईश! भारतवर्ष में, शतवार मेरा जन्म हो।कारण सदा ही मृत्यु का, देशीय कारक कर्म हो।।
मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से।होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रूधिर की धार से।।उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का।तब नाश होगा सर्वदा, दुख शोक के लव लेश का।।
सब से मेरा नमस्कार कहिए,
तुम्हारा
बिस्मिल"
रामप्रसाद बिस्मिल की शायरी, जो उन्होने कालकोठरी में लिखी और गाई थी, उसका एकट-एक शब्द आज भी भारतीय जनमानस पर उतना ही असर रखता है जितना उन दिनो रखता था। बिस्मिल की निम्न शायरी का हर शब्द अमर है:
सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना, बाजुए कातिल में है।।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।।
और:
दिन खून के हमारे, यारो न भूल जाना
सूनी पड़ी कबर पे इक गुल खिलाते जाना।
साईं ने कहा है : भाग - 187
"ब्रह्मज्ञान या आत्मानुभूति का मार्ग सरल नही, वह तो तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है।"
Sunday, 11 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 186
"सांसारिक वस्तुओ की अभिलाषा करने वालो का अभाव नही, ब्रह्मज्ञान को पानेवाले आध्यात्मिक जिज्ञासु दुर्लभ है।"
Saturday, 10 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 185
"वो ही भाग्यशाली मेरी उपासना की ओर अग्रसर होते है, जिनके समस्त पाप नष्ट हो गए हो।"
Friday, 9 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 184
"माया ब्रह्माद्दी को भी नही छोडती, फिर मुझ जैसे फकीर का तो क्या कहना? परन्तु जो हरि की शरण लेगे वे मायाजाल से मुक्त हो जायेंगे।"
Thursday, 8 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 183
"मेरा नाम स्मरण करने से, बोलने और सुनने से किए गए पाप कर्मो का अंत होता है।"
Wednesday, 7 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 182
"मेरे भक्तो के घर अन्न तहत वस्त्रो का कभी आभाव नही होगा।"
Tuesday, 6 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 181
मुझ पर दृढ़ विश्वास रखने वाले भक्तो का अहंकार व द्वेष भव समाप्त हो जाता है।"
Monday, 5 October 2009
Sunday, 4 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 179
"अच्छे लोगो का साथ सत्संग है, बुरे लोगो का साथ दुसंग है, जिससे सदा दूर रहो।"
Saturday, 3 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 178
"हम इस शरीर कि मालिक नही है, यह तो हमे ईश्वर की सेवा करने के लिए प्राप्त हुआ है।"
Friday, 2 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 177
"अगर तुम भूखे को भोजन, प्यासे को पानी और निर्वस्त्र को वस्त्र दोगे तो श्री हरि प्रस्सन होंगे।"
सूचना
Thursday, 1 October 2009
साईं ने कहा है : भाग - 176
"सदा अपने स्थान पर दृढ़ रहकर गतिमान दृश्य को शांतिपूर्वक देखो, क्यो भटकते हो। साईं तुम्हारा परित्याग नही करेंगे।"
साईं महिमा : भाग - 1
Wednesday, 30 September 2009
तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब : मोमिन
कहीं साया मेरा पड़ा साहब
है ये बन्दा ही बेवफ़ा साहब
ग़ैर और तुम भले भला साहब
क्यों उलझते हो जुम्बिशे-लब से
ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब
क्यों लगे देने ख़त्ते-आज़ादी
कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब
दमे-आख़िर भी तुम नहीं आते
बन्दगी अब कि मैं चला साहब
सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरो-जफ़ा
जो किया सो भला किया साहब
किससे बिगड़े थे,किसपे ग़ुस्सा थे
रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब
किसको देते थे गालियाँ लाखों
किसका शब ज़िक्रे-ख़ैर था साहब
नामे-इश्क़े-बुताँ न लो 'मोमिन'
कीजिए बस ख़ुदा-ख़ुदा साहब
कठिन शब्दों के अर्थ:
ख़फ़ा: नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब: होंटो का हिलना, ख़त्ते-आज़ादी: आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़, दमे-आख़िर: अंतिम समय, ज़िक्रे-ख़ैर: बखान, नामे-इश्क़े-बुताँ: हसीनों के प्रेम का नाम
बीत गये दिन भजन बिना रे : संत कबीर
भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥
बाल अवस्था खेल गवांयो ।
जब यौवन तब मान घना रे ॥
लाहे कारण मूल गवाँयो ।
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥
कहत कबीर सुनो भई साधो ।
पार उतर गये संत जना रे ॥
साईं ने कहा है : भाग - 175
"अपने वचन का पालन करने के लिए मैं अपने जीवन को भी न्योछावर कर सकता हूँ।"
Tuesday, 29 September 2009
साईं ने कहा है : भाग - 174
"मानवता ही मनुष्य की सबुरी (धैर्य) है,
धैर्य धारण करने से समस्त पाप और मोह नष्ट हो जाते है।"
Monday, 28 September 2009
सुपने में साईं मिले : संत कबीर
सोवत लिया लगाए
आंख न खोलूं डरपता
मत सपना है जाए
साईं मेरा बहुत गुण
लिखे जो हृदय माहिं
पियूं न पाणी डरपता
मत वे धोय जाहिं
नैना भीतर आव तू
नैन झांप तोहे लेउं
न मैं देखूं और को
न तेही देखण देउं
नैना अंतर आव तू
ज्यौ हौं नैन झंपेउं
ना हौं देखूं और कूँ
ना तुम देखण देउं
कबीर रेख सिंदूर की
काजर दिया न जाइ
नैनू रमैया रमि रह्या
दूजा कहॉ समाइ
मन परतीत न प्रेम रस
ना इत तन में ढंग
क्या जानै उस पीवसू
कैसे रहसी रंग
अंखियां तो छाई परी
पंथ निहारि निहारि
जीहड़ियां छाला परया
नाम पुकारि पुकारि
बिरह कमन्डल कर लिये
बैरागी दो नैन
मांगे दरस मधुकरी
छकै रहै दिन रैन
सब रंग तांति रबाब तन
बिरह बजावै नित
और न कोइ सुनि सकै
कै सांई के चित
Sunday, 27 September 2009
माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ : संत कुम्भनदास
"माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ।
मेरे तो ब्रत यहै निरंतर, और न रुचि उपजाऊँ ॥
खेलन ऑंगन आउ लाडिले, नेकहु दरसन पाऊँ।
'कुंभनदास हिलग के कारन, लालचि मन ललचाऊँ ॥
साईं ने कहा है : भाग - 172
"कोई कितना भी दुखित और पीड़ित क्यो ना हो, जैसे ही वह मस्जिद की सीढियों पे पैर (चरण) रखता है वह सुखी हो जाता है।"
Saturday, 26 September 2009
देख जिऊँ माई नयन रँगीलो : संत कृष्णदास
"देख जिऊँ माई नयन रँगीलो।
लै चल सखी री तेरे पायन लागौं,
गोबर्धन धर छैल छबीलो॥
नव रंग नवल, नवल गुण नागर,
नवल रूप नव भाँत नवीलो।
रस में रसिक रसिकनी भौहँन,
रसमय बचन रसाल रसीलो॥
सुंदर सुभग सुभगता सीमा,
सुभ सुदेस सौभाग्य सुसीलो।
'कृष्णदास प्रभु रसिक मुकुट मणि,
सुभग चरित रिपुदमन हठीलो॥"
साईं ने कहा है : भाग - 171
"यदि कुछ मांगना है तो ईश्वर से मांगो, सांसारिक मान व उपाधियाँ त्याग दो,
ईश्वर की कृपा तथा अभयदान प्राप्त करने का प्रयास करो।"
Friday, 25 September 2009
सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल : संत छीतस्वामी
"सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल,
मिटिहैं जंजाल सकल निरखत सँग गोप बाल।
मोर मुकुट सीस धरे, बनमाला सुभग गरे,
सबको मन हरे देख कुंडल की झलक गाल॥
आभूषन अंग सोहे, मोतिन के हार पोहे,
कंठ सिरि मोहे दृग गोपी निरखत निहाल।
'छीतस्वामी' गोबर्धन धारी कुँवर नंद सुवन,
गाइन के पाछे-पाछे धरत हैं चटकीली चाल॥"
साईं ने कहा है : भाग - 170
"धनवान के लिए धन का महत्व तभी है, जब वह उसे धर्म और दान में कर्च करे।"
Thursday, 24 September 2009
मेरे देश के लाल : बालकवि बैरागी
साईं ने कहा है : भाग - 169
"अपनी चतुराई पर विश्वास कर तुम रास्ता भटक गए,
सही रास्ता दिखने के लिए पाठ प्रदर्शक गुरु आवश्यक है।"
Wednesday, 23 September 2009
भक्तन को कहा सीकरी सों काम : संत कुम्भनदास
"भक्तन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पन्हैया टूटी बिसरि गये हरि नाम॥
जाको मुख देखे अघ लागै करन परी परनाम॥
'कुम्भनदास' लाल गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम॥"
Tuesday, 22 September 2009
दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ : संत कबीर
साईं ने कहा है : भाग - 167
"मुझे ही अपनी दृष्टि, ध्यान और मनन का केन्द्र बना लो, तुम्हे बहुत लाभ होगा।"
Monday, 21 September 2009
इंशा जी उठो अब कूच करो : इंशा अल्लाह खां
वहशी को सुकूँ से क्या मतलब, जोगी का नगर में ठिकाना क्या।
इस दिल के दरीदा-दामन को देखो तो सही, सोचो तो सही,
जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली को फैलाना क्या।
शब बीती चांद भी डूब गया ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में,
क्यों देर गये घर आये हो सजनी से करोगे बहाना क्या।
उस हुस्न के सुच्चे मोती को हम देख सकें पर छू न सकें,
जिसे देख सकें पर छू न सकें वो दौलत क्या वो ख़ज़ाना क्या।
उस को भी जला दुखते हुए मन इक शोला लाल भभूका बन,
यूँ आँसू बन बह जाना क्या यूँ माटी में मिल जाना क्या।
जब शहर के लोग न रस्ता देखे क्यों वन में न जा विश्राम करे,
दीवानों की-सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या।
रहना नहिं देस बिराना है : संत कबीर
Sunday, 20 September 2009
मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै : संत कबीर
हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै।
हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।
सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले।
हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै।
तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै।
कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥
जार को बिचार कहा गनिका को लाज कहा : टोडर
गदहा को पान कहा आँधरे को आरसी।
निगुनी को गुन कहा दान कहा दारिदी को,
सेवा कहा सूम को अरँडन की डार सी।
मदपी की सुचि कहा साँच कहा लम्पट को,
नीच को बचन कहा स्यार की पुकार सी।
टोडर सुकवि ऎसे हठी ते न टारे टरे,
भावै कहो सूधी बात भावै कहो फारसी।
( Note : टोडर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है। )
साईं ने कहा है : भाग - 165
"जिसने ब्रम्ह को समर्पण कर दिया हो, वह सभी प्राणियों में ईश्वर का दर्शन करता है।"
Saturday, 19 September 2009
बहुरि नहिं आवना या देस : संत कबीर
साईं ने कहा है : भाग - 164
"राम और रहीम को एक मनो और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करो।"
Friday, 18 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 5
रहिमन मोम तुरंग चढ़ि, चलिबो पावक मांहि।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नांहि।।
रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट है जात।
नारायण हू को भयो, बावन आंगुर गात।।
रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार।
चोरी करि होरी रची, भई तनिक में छार।।
समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह।।
साईं ने कहा है : भाग - 163
"दूसरे के बारे में बुरा ना बोलो, बुरा ना सोचो और बुरा न सुनो।"
Thursday, 17 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 4
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसो ही फल दीन।।
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय।।
धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ई कौन है, जगत पिआसो जाय।।
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस।
महिमा घटि सागर की, रावण बस्यो पड़ोस।।
रुठे सुजन मनाइए, जो रुठै सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार।।
समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय।
सदा रहे नहिं एकसो, का रहिम पछिताय।।
साईं ने कहा है : भाग - 162
"चित की सुधि अति आवश्यक है, उसके अभाव में हमारे सभी आध्यात्मिक प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।"
Wednesday, 16 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 3
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥1॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥2॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥3॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥4॥
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥5॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥6॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥7॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥8॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥9॥
साईं ने कहा है : भाग - 161
"गरीबी अवल बादशाही, अमीरी से लाख सवाई, गरीबो का अल्लहा भाई।"
Tuesday, 15 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 2
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥1॥
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥2॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥3॥
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥4॥
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥5॥
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥6॥
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥7॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥8॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥9॥
साईं ने कहा है : भाग - 160
"जो ईश्वर कृपा से प्राप्त हो उसी में संतुष्ट रहो और लगन से कार्य करो।"
Monday, 14 September 2009
रहीम के दोहे : भाग - 1
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥
साईं ने कहा है : भाग - 159
"गुरु की शरण में आने के पश्चात् ही पापो का नाश होता है।"
Sunday, 13 September 2009
साईं ने कहा है : भाग - 158
"मैं एक दो बार तुम्हे चेतावनी दूंगा, आगया का पालन ना करने पर अंत में कठोर परिणाम भुगतना पड़ेगा।"
दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन : मलूकदास
तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन॥
आदर मान, महत्व, सत, बालापन को नेहु।
यह चारों तबहीं गए जबहिं कहा कछु देहु॥
इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।
बात कहत ढर जात है, बालू की सी भीत॥
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास 'मलूका कह गए, सबके दाता राम॥
Saturday, 12 September 2009
साईं ने कहा है : भाग - 157
"शर्म करो....... ईष्या और शत्रुता की भावना का त्याग कर, संतुष्ट और प्रस्सन रहो।"
हमसे जनि लागै तू माया : मलूकदास
थोरेसे फिर बहुत होयगी, सुनि पैहैं रघुराया॥१॥
अपनेमें है साहेब हमारा, अजहूँ चेतु दिवानी।
काहु जनके बस परि जैहो, भरत मरहुगी पानी॥२॥
तरह्वै चितै लाज करु जनकी, डारु हाथकी फाँसी।
जनतें तेरो जोर न लहिहै, रच्छपाल अबिनासी॥३॥
कहै मलूका चुप करु ठगनी, औगुन राउ दुराई।
जो जन उबरै रामनाम कहि, तातें कछु न बसाई॥४॥
Friday, 11 September 2009
काशी साईं आज का विचार : भाग - 21
There is no greater Sadhana (spiritual exercise) than service. Service is the principle means for acquiring divine grace. Without being a devoted follower, you cannot become a worthy leader. If you are not willing to do work, you cannot attain divinity. Each one has to realize this truth. Service to society is the highest good. It is Truth, Right Conduct, Peace, Love and Non-violence that give happiness. These are the five principles that sustain life. Under no circumstances should these principles be given up. Render service to society with these principles in your mind, and with broad-minded dedication to the well-being of all.
JAI SAI RAM
साईं ने कहा है : भाग - 156
"हमारे कर्म ही सुख-दुःख का कारण होते है, इसलिए जैसी स्थिति हो उसे स्वीकार करो।'
दरद-दिवाने बावरे : मलूकदास
एक अकीदा लै रहे, ऐसे मन धीरा॥१॥
प्रेमी पियाला पीवते, बिदरे सब साथी।
आठ पहर यो झूमते, ज्यों मात हाथी॥२॥
उनकी नजर न आवते, कोइ राजा रंक।
बंधन तोड़े मोहके, फिरते निहसंक॥३॥
साहेब मिल साहेब भये, कछु रही न तमाई।
कहैं मलूक किस घर गये, जहँ पवन न जाई॥४॥
Thursday, 10 September 2009
कौन मिलावै जोगिया हो : मलूकदास
मैं जो प्यासी पीवकी, रटत फिरौं पिउ पीव।
जो जोगिया नहिं मिलिहै हो, तो तुरत निकासूँ जीव॥१॥
गुरुजी अहेरी मैं हिरनी, गुरु मारैं प्रेमका बान।
जेहि लागै सोई जानई हो, और दरद नहिं जान॥२॥
कहै मलूक सुनु जोगिनी रे,तनहिमें मनहिं समाय।
तेरे प्रेमकी कारने जोगी सहज मिला मोहिं आय॥३॥
महिमा साईं नाम की
Wednesday, 9 September 2009
अपनी भूल स्वीकार करना
परस्पर विरोध रहने के कारण अनबन चल रही हो, तो उस अनबन को समझौते द्घारा तय कीजिए और आगे के लिये ऐसा ढंग अपनाइए कि समस्या जटिल न होने पाएँ । अनबन का अंत यदि शीघ्र ही नहीं होता, तो वह धीरे-धीरे भीषण रुप धारण कर लेती है और फिर उसका समाधान बहुत कठिन हो जाता है ।
चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...
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संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ। साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ। साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ। साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जा...
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काशी साईं फाउंडेशन के अंशदान रुपये 2,100/- एवं निवेदन पत्र दिनांक 25-09-2013 पर जिलाधिकारी वाराणसी ने टाउन हाल स्थित "भारत के राष्ट...
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भगत देश का - शहीदेआजम भगत सिंह को समर्पित