Tuesday, 30 June 2009
हमारा देश : अज्ञेय
ढंके ढुलमुल गँवारू
झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है
इन्हीं के ढोल-मादल-बाँसुरी के
उमगते सुर में
हमारी साधना का रस बरसता है
इन्हीं के मर्म को अनजान
शहरों की ढँकी लोलुप
विषैली वासना का साँप डँसता है
इन्हीं में लहरती अल्हड़
अयानी संस्कृति की दुर्दशा पर
सभ्यता का भूत हँसता है।
हरि समान दाता कोउ नाहीं : मलूकदास
सदा बिराजैं संतनमाहीं॥१॥
नाम बिसंभर बिस्व जिआवैं।
साँझ बिहान रिजिक पहुँचावैं॥२॥
देइ अनेकन मुखपर ऐने।
औगुन करै सोगुन करि मानैं॥३॥
काहू भाँति अजार न देई।
जाही को अपना कर लेई॥४॥
घरी घरी देता दीदार।
जन अपनेका खिजमतगार॥५॥
तीन लोक जाके औसाफ।
जनका गुनह करै सब माफ॥६॥
गरुवा ठाकुर है रघुराई।
कहैं मूलक क्या करूँ बड़ाई॥७॥
Monday, 29 June 2009
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी : रैदास
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।
व्याख्यान :
है प्रभु ! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है ? अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ। जो चंदन और पानी में होता है। चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे तन मन में तुम्हारा प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है। आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो, मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ। जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है, उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ। जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ।
है प्रभु ! तुम दीपक हो, मैं तुम्हारी बाती के समान सदा तुम्हारे प्रेम जलता हूँ। प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो। मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। तुम्हारा और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है। जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है, उसी तरह मैं तुम्हारे संपर्क से शुद्ध –बुद्ध हो जाता हूँ। हे प्रभु ! तुम स्वामी हो मैं तुम्हारा दास हूँ।
साईं ने कहा है : भाग - 82
"अगर कोई भक्त पूर्ण समर्पण कर मेरा ध्यान करता है,
तो वह मेरे साथ एकाकार का अनुभव करता है।"
Sunday, 28 June 2009
गाँधी : रामधारी सिंह "दिनकर"
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ
"जडता को तोडने के लिए
भूकम्प लाओ।
घुप्प अँधेरे में फिर
अपनी मशाल जलाओ।
पूरे पहाड हथेली पर उठाकर
पवनकुमार के समान तरजो।
कोई तूफान उठाने को
कवि, गरजो, गरजो, गरजो !"
सोचता हूँ, मैं कब गरजा था?
जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,
वह असल में गाँधी का था,
उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था।
तब भी हम ने गाँधी के
तूफान को ही देखा,
गाँधी को नहीं।
वे तूफान और गर्जन के
पीछे बसते थे।
सच तो यह है
कि अपनी लीला में
तूफान और गर्जन को
शामिल होते देख
वे हँसते थे।
तूफान मोटी नहीं,
महीन आवाज से उठता है।
वह आवाज
जो मोम के दीप के समान
एकान्त में जलती है,
और बाज नहीं,
कबूतर के चाल से चलती है।
गाँधी तूफान के पिता
और बाजों के भी बाज थे।
क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।
हरिनाम बिना नर ऐसा है : मीराबाई
जैसे बिना पुरुखकी नारी है। जैसे पुत्रबिना मातारी है।
जलबिन सरोबर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥१॥
जैसे सशीविन रजनी सोई है। जैसे बिना लौकनी रसोई है।
घरधनी बिन घर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥२॥
ठुठर बिन वृक्ष बनाया है। जैसा सुम संचरी नाया है।
गिनका घर पूतेर जैसा है। हरिनम बिना नर ऐसा है॥३॥
मीराबाई कहे हरिसे मिलना। जहां जन्ममरणकी नही कलना।
बिन गुरुका चेला जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥४॥
साईं ने कहा है : भाग - 81
साईं ने कहा है, कि....
" मैं जल, थल अग्नि, आकाश, आदि हर वस्तु में हूँ,
मैं अजन्मा, शाश्वत और अक्षय हूँ।"
Saturday, 27 June 2009
आओ पतझड़
क्यो ना आया तू मेरे भी जीवन में
गिर जाते पात मेरे भी पुराने, सूखे
और कुछ नई निकलती कोपले
नई पत्तिया और शाखाए भी।
जीवन चलता जा रहा है
लगातार एकरूपता में डूबा हुआ
क्या नही चाहिए
परिवर्तन, पतझड़ और झँझावात
वृक्ष की तरह ही
हमारे भी जीवन में।
......... समीर वत्स, ला स्कूल, वाराणसी।
कबीर ने कहा है : भाग - 9
कबीर ने कहा है, कि....
"ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोइ ।
अपना तन सीतल करै, औरन को सुख होइ ॥"
भावार्थ -
अपना अहंकार छोड़कर ऐसी बाणी बोलनी चाहिए कि, जिससे बोलनेवाला स्वयं शीतलता और शान्ति का अनुभव करे, और सुननेवालों को भी सुख मिले ।
साईं ने कहा है : भाग - 80
"ऋणअनुबंध के कारण ही हमारा मिलन होता है,
आओ एक दुसरे की प्रेम पूर्वक सेवा करे।"
Friday, 26 June 2009
तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया : संत कबीर
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ॥
सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे ।
बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे ।
माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे ।
गया ना मन का फेर रे ।
हाथ का मनका छाँड़ि दे मन का मनका फेर ॥
दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे ।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे ।
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे ।
दुख में करता याद रे ।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ॥
साईं ने कहा है : भाग - 79
"किसी कि प्रति इर्ष्या, घृणा और बदले की भावना नही रखनी चाहिये
सदा प्रस्स्न्न रहना चाहिये, सफलता अपने आप के कदम चूमेगी।"
Thursday, 25 June 2009
कबीर ने कहा है : भाग - 8
"कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार ।
तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न फार ॥"
भावार्थ -
कबीर कहते हैं - यदि हरिनाम पर अविरल प्रीति बनी रहे, तो उसके मुख से मोती-ही मोती झड़ेंगे, और इतने हीरे कि जिनकी गिनती नहीं । [ हरि भक्त का व्यवहार - बर्ताव सबके प्रति मधुर ही होता है- मन मधुर, वचन मधुर और कर्म मधुर ।]
साईं चाहते हैं :-
साईं ने कहा है : भाग - 78
"यदि कोई तुमसे द्रव्य-याचना करे और तुम्हारी देने की इच्छा न हो तो उसे नम्रता से मना कर दो।"
Wednesday, 24 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 77
"यदि कोई मनुष्य या प्राणी तुम्हारे समीप आए,
तो उसे असभ्यता से न ठुकराओ,
उसका स्वागत कर आदरपूर्वक बर्ताव करो।"
Tuesday, 23 June 2009
कबीर ने कहा है : भाग - 7
दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार ॥
भावार्थ - बैरागी वही अच्छा, जिसमें सच्ची विरक्ति हो, और गृहस्थ वह अच्छा, जिसका हृदय उदार हो । यदि वैरागी के मन में विरक्ति नहीं, और गृहस्थ के मन में उदारता नहीं, तो दोनों का ऐसा पतन होगा कि जिसकी हद नहीं ।
Bulleh Shah [बाबा बुल्लेह शाह] (1680 - 1758)
Bulleh Shah himself became a respected scholar, but he longed for true inner realization. Against the objections of his peers, he became a disciple of Inayat Shah, a famous master of the Qadiri Sufi lineage, who ultimately guided his student to deep mystical awakening.
The nature of Bulleh Shah's realization led to such a profound egolessness and non-concern for social convention that it has been the source of many popular comical stories -- calling to mind stories of St. Francis or Ramakrishna. For example, one day Bulleh Shah saw a young woman eagerly waiting for her husband to return home. Seeing how, in her anticipation, she braided her hair, Bulleh Shah deeply identified with the devoted way she prepared herself for her beloved. So Bulleh Shah dressed himself as a woman and braided his own hair, before rushing to see his teacher, Inayat Shah.
Bulleh Shah is considered to be one of the greatest mystic poets of the Punjab region.
His tomb in the Qasur region of Pakistan is greatly revered today.
सोते रहो - 3 : माँ (गुरुमाँ)
साईं ने कहा है : भाग - 76
"अगर तुम मेरे निराकार सचिदानंद स्वरुप का ध्यान करने में असमर्थ हो,
तो मेरे साकार रूप का ही ध्यान करो।"
Monday, 22 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 75
"निरंतर ध्यान करने से कुविचार भी शुद्ध हो जाते है।"
सोते रहो - 2 : माँ (गुरुमाँ)
Sunday, 21 June 2009
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे - संत कबीर
मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।
मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥
मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।
मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥
जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।
तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥
सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥
साईं ने कहा है : भाग - 74
"ध्यान पूर्वक मेरी श्रवन करने वाले को लाभ होगा,
इस मस्जिद में बैठकर मैं असत्य नही कहता।"
हिन्दुत्व
आज कल हमारे देश में हिन्दुत्व पर काफी कुछ कहा जा रहा है,
पर जिस हिन्दुत्व को हम जानते हैं, वो कुछ ऐसा है.......!!
हिन्दुत्व वह है, जिसमें अपने देश के लिए "शिवा जी" मुगलों से लड़ गए थे ।
हिन्दुत्व वह है, जिसमें अपने देश के लिए "रानी लक्ष्मीबाई" अग्रेजो से लड़ गयी थी ।
हिन्दुत्व वह है, जिसमें अपने देश के लिए "गाँधी जी" अहिंसा के बल पर अग्रेजो से लड़ गए थे ।
हिन्दुत्व वह है, जिसमें अपने देश के लिए "हजारो सैनिक" तीरगे की शान के लिए शहीद हो जाते हैं ।
हिन्दुत्व वह है, जिसमें अपने देश के लिए "हम सभी भारतवासी" प्रेम करना व पाना चाहते हैं और प्रेम हर धर्म, हर पंथ, हर जाति से ऊपर होता है ।
॥ जय भारत ॥
॥ जय भारत प्रेम ॥
॥ जय साईं भारत प्रेम ॥
सोते रहो - 1 : माँ (गुरुमाँ)
Saturday, 20 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 73
"जो कुछ ईश्वर कृपा से प्राप्त है,
उसमें ही संतुष्ट रहना चाइए।"
Friday, 19 June 2009
काशी साईं आज का विचार : 19
साईं ने कहा है : भाग - 72
"चित में लोभ और लालच तिल मात्र भी शेष रह जाने पर,
सभी आध्यात्मिक साधनाये व्यर्थ सिद्ध होती है।"
Thursday, 18 June 2009
झीनी झीनी बीनी चदरिया - संत कबीर
काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी,
सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै,
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥
साँ को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,
ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी,
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥
साईं ने कहा है : भाग : 71
"सुध चित में विवेक और वैराग्य की वृद्धि होती है,
जो सुलब सकक्षात्कार करवाती है।"
Wednesday, 17 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 70
"अगर कोई वस्तु तुम्हारे पास है,
लेकिन तुम उसे देना नही चाहते,
तो झूठ मत बोलो की तुम्हारे पास नही है,
नम्रता से मना कर दो।"
Tuesday, 16 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 69
"जहा शुद्ध (सच्चा) प्रेम और भक्ति होती है, मैं वह निवास करता हूँ।"
Monday, 15 June 2009
केहि समुझावौ सब जग अन्धा - संत कबीर
इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं, सबहि भुलाने पेटके धन्धा ।
पानी घोड पवन असवरवा, ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ १॥
गहिरी नदी अगम बहै धरवा, खेवन- हार के पडिगा फन्दा ।
घर की वस्तु नजर नहि आवत, दियना बारिके ढूँढत अन्धा ॥ २॥
लागी आगि सबै बन जरिगा, बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा ॥ ३॥
काशी साईं आज का विचार : 18
साईं ने कहा है : भाग - 68
"साईं सेवा की इच्छा करने वाले भक्त की अन्य सभी प्रकार की इच्छाए समाप्त हो जाती है."
Sunday, 14 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 67
"भक्ति भावः से निरंतर साईं - साईं कहते रहो,
मैं तुम्हे भव: सागर से पर उतार दूंगा।"
Saturday, 13 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 66
साईं ने कहा है, कि.....
"आत्मज्ञानी व्यक्ति मुक्त होता है,
वह संसार में रहकर भी उससे विरक्त रहता है।"
Friday, 12 June 2009
घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे - संत कबीर
घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥
धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे।
सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे।।
जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे।
कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥
साईं ने कहा है : भाग - 65
"मुझे भक्त प्रिय है,
मैं अपने भक्तो का दास हूँ,
मैं हमेशा उनमें विद्यमान रहूगा।"
Thursday, 11 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 64
"द्वारकामाई की छाया में विश्राम करने वाले को परम आनंद की प्राप्ति होती है।"
Wednesday, 10 June 2009
खुदा से पूछा कि खूबसूरती क्या है?
मैने खुदा से पूछा कि खूबसूरती क्या है?
तो वो बोले.........
खूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है।
खूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए।
खूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए ।
ख़ूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे।
खूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो।
खूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियां ।
ख़ूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने खूबसूरत ख्वाब समा जाएँ।
खूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ ।
ख़ूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए।
खूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ।
खूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल।
साईं ने कहा है : भाग - 63
"ज्ञान होने मात्र से अहिंसा का जन्म होता है,
व अज्ञान से हिंसा का जन्म होता है।"
Tuesday, 9 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 62
"जो मन पर सवार होता है,
वो मोक्ष प्राप्त करता है।
और जिसपर मन सवार होता है,
वो सांसारिक बन्धनों में उलझा रहता है।"
Monday, 8 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 61
साईं ने कहा है, कि
"जब मन शून्य हो जाता है, तभी ज्ञान की प्राप्ति होती है।"
Sunday, 7 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 60
"साईं चिंतन में लीन होने वाला जन्म मृत्यु के चक्कर से छुटकारा पाता है।"
Saturday, 6 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 59
Friday, 5 June 2009
Thursday, 4 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 57
"मैं ही समस्त ब्रह्माण्ड का नियंत्रणकर्त्ता व संचालक हूँ।"
Wednesday, 3 June 2009
साईं वंदना
आपके कदमो के पास हूँ, अपना आशीष और प्यार देना।
हे मेरे शिर्डी के साईं ! कोई गलती हो तो बता देना।
आपके हुक्म की तामिल होगी, आपकी हर बात मानेंगे।
हे शिर्डी के साईं बाबा ! बस आपके गुन गायेंगे।
मेरी कोई हस्ती नही, बस आपका बल है ।
मेरी कोई ताकत नही , आपका सम्बल है ।
सहारा देना कही डूब ना जावू, तेरी दुआ से ही सब कुछ पावू ।
मेरी तकदीर आप है बाबा, आप है मालिक और मेरे राजा ।
शिर्डी के शहंशाह आप है , सबके मदद-गार आप है ।
हम आपके कदमो की धूल है , आप सबसे खुबसूरत फूल है.......
आप मालिक है , चाहे जो सजा दे ।
पर दया कर साईं , मेरी गलती बता दे ।
बार -बार बंदगी, नमस्कार है तुम्हे ।
साईं तेरी हर बात , स्वीकार है हमें ।
यह जीवन आपका , यह स्वास आपकी ।
हर लम्हा आपका , हर बात आपकी ।
मुझे रास्ता दिखावो , मुझे अब जगावो ।
शिर्डी के साईं बाबा , मुझे आगे बधावो ।
तेरे द्वार बैठा , तेरी याद करता ।
हे शिर्डी के साईं ! तेरा नाम जपता ।
साईं ने कहा है : भाग - 56
"मेरी ही उदर में समस्त जड़ व चेतन प्राणी समाये हुए हैं।"
जिंदगी इक किराये का घर :-
जिंदगी इक किराये का घर है,
इक न इक दिन बदलना पड़ेगा।
मौत जब तुझको आवाज देगी,
घर से बाहर निकलना पड़ेगा !!
Tuesday, 2 June 2009
मैं और जिन्दगी
मैं दो कदम चलता और एक पल को रूकता मगर, इस एक पल में जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे चली जाती, मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रूकता मगर, जिन्दगी मुझसे फिर चार कदम आगे चली जाती, जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती, ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा, फिर एक दिन मुझको हँसता देख एक सितारे ने पुछा "तुम हारकर भी मुस्कुराते हो, क्या तुम्हे दुःख नहीं होता हार का?" तब मैंने कहा, मुझे पता है एक ऐसी सरहद आएगी जहां से जिन्दगी चार तो क्या एक कदम भी आगे नहीं जा पायेगी और तब जिन्दगी मेरा इंतज़ार करेगी और मैं तब भी अपनी रफ्तार से यूँ ही चलता-रुकता वहां पहुँचूंगा.........
एक पल रुक कर जिन्दगी की तरफ देख कर मुस्कुराऊँगा, बीते सफ़र को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाऊँगा, ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाऊंगा, मैं अपनी हार पर मुस्कुराया था और अपनी जीत पर भी मुस्कुराऊंगा और जिन्दगी अपनी जीत पर भी न मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी न मुस्कुरा पायेगी, बस तभी मैं जिन्दगी को जीना सिखाऊँगा l
साईं ने कहा है : भाग - 55
"मैं ही समस्त प्राणियों का प्रभु व घट-घट में वयाप्त हूँ।"
Monday, 1 June 2009
साईं ने कहा है : भाग - 54
"मेरी कथाओं का श्रवन करने से तुम्हारे समस्त कष्टों का अंत हो जाएगा।"
चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...
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संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ। साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ। साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ। साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जा...
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काशी साईं फाउंडेशन के अंशदान रुपये 2,100/- एवं निवेदन पत्र दिनांक 25-09-2013 पर जिलाधिकारी वाराणसी ने टाउन हाल स्थित "भारत के राष्ट...
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भगत देश का - शहीदेआजम भगत सिंह को समर्पित