हम तो घिर गए हैं प्रेम के हाथों मैं, तुम अभी तक तुम्हारे हाथ ही हो,
सोते रहो।
मैं वेही हूँ जो मस्त है प्रेम में,
तुम अभी भोग भोजन में मस्त हो,
सोते रहो।
मैंने तो अपना सर दे दिया है, और कहने को कुछ नही,
पर तुम तो घेर सकते हो सवयं को, शब्दों के लिबास में,
सोते रहो।
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