केहि समुझावौ सब जग अन्धा ॥
इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं, सबहि भुलाने पेटके धन्धा ।
पानी घोड पवन असवरवा, ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ १॥
गहिरी नदी अगम बहै धरवा, खेवन- हार के पडिगा फन्दा ।
घर की वस्तु नजर नहि आवत, दियना बारिके ढूँढत अन्धा ॥ २॥
लागी आगि सबै बन जरिगा, बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा ॥ ३॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...

-
संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ। साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ। साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ। साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जा...
-
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ? रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ? जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते, हमा...
-
पर्यावरण शुद्धिकरण व भारत प्रेम की भावना को जागृत करने के लिए आर्या समाज पद्धति से हवन का आयोजन: पारस नाथ यादव (अधिवक्ता), सतेन्द्र कुमार श...
No comments:
Post a Comment