Monday 29 June 2009

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी : रैदास

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।

व्याख्यान :
है प्रभु ! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है ? अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ। जो चंदन और पानी में होता है। चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे तन मन में तुम्हारा प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है। आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो, मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ। जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है, उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ। जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ।
है प्रभु ! तुम दीपक हो, मैं तुम्हारी बाती के समान सदा तुम्हारे प्रेम जलता हूँ। प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो। मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ। तुम्हारा और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है। जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है, उसी तरह मैं तुम्हारे संपर्क से शुद्ध –बुद्ध हो जाता हूँ। हे प्रभु ! तुम स्वामी हो मैं तुम्हारा दास हूँ।

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