Thursday 16 April 2009

मजहब, जाति और चुनाव

आप लोगों ने मजहब का नाम तो जरूर सुना होगा, जी ये वाही मजहब है जिसकी आड़ लेकर सत्ताधारी जनता को आपस मे लड़ाते रहते है।दह्शतगर्द मासूम लोंगों पर गोलियाँ चलाते रहते हैं. क्योंकि इनके गुरुघण्टाल गुरुओं ने मजहब के नाम पर इनके दिमाग मे दूसरे धर्म के प्रति नफरत ही भरा है और इनकी बेवकूफियों को भुनाकर अपना उल्लू सीधा किया है,जिसे ये धर्मांध समझना नही चाहते. हम सब देश मे सुधार की बात तो करते हैं पर चाहते हैं की इसकी शुरुआत कोई और करे (मेरे भैया की जुबानी मैने सुना था की-"हर इंसान ये चाहता है की महात्मा गांधी फिर से पैदा हो,पर पड़ोसी के घर में")
आज जब आतंकवादी हमलों मे किसी हिन्दू संगठन का नाम आता है तो हिन्दू धर्म के ठेकेदार जमाने भर के हिन्दू दलों और साधु-सन्यासियों की फौज लेकर सड़क पर उत्तर आते है. इसी तरह जब किसी मुस्लिम संगठन का नाम आ जाए तो उनके जमात वाले अपने आकाओं की अगुआई मे उस आतंकी की परवी करने निकल पड़ते है.क्यो ये लोग नहीं सोचते की मानवता और इन्शानियत ही आदमी का असल मजहब है .मैं किसी भी धर्म के पक्षा या विपक्ष मे नहीं हूँ, बल्कि मैं तो चाहती हूँ की सब धर्म के लोग बिना किसी भेदभाव के मिल-जुलकर रहे.जब कोई बच्चा संसार मे जन्म लेता है तो उसे नहीं पता होता की वो हिन्दू है,मुसलमान है, सिख है, ईसाई है, जैन है, बौद्ध है या क्या है ??? ईश्वर ने तो केवल एक स्त्री और एक पुरुष की ही रचना की थी , बाकी चीजें तो इंसान ने खुद ही बनाई है सिवाय प्रकृति के ,आखिर कहीं ना कहीं तो हम एक ही माता-पिता की संतानें हैं. फिर अपने ही भाई-बहनों का खून बहाकर किसी को क्या मिल सकता है.कोइ भी धर्म गलत रास्ता नहीं बताता, ये तो मानने वाले ही हैं जो धर्म को बदनाम कर देते हैं.


मजहब नहीं सिखाता,

आपस मे बैर रखना.......

ये पंक्ति हर मजहब के इंसान को याद रखनी चाहिए.

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