Monday, 21 March 2011

काशी साईं विचार :-

जो दुसरो के मन की बात जान ले, वह चतुर है॥

जो अपने को जान ले, वह आत्मज्ञानी है॥

जो दूसरो को जीत ले, उसे समर्थ कहते है॥

जो अपने को जीत ले, वह परम समर्थ है॥

जो निष्पाप है, वह परम सुखी है॥

द्वारा :- ताओ तहे किंग

Wednesday, 16 March 2011

ये इनायते गजब की :- "काशी साईं परिवार" होली वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं

मुझे फूंकने से पहले मेरा दिल निकाल लेना,
किसी और की अमानत कही साथ जल जाये
~ * ~
मेरी बेज़ुबा आँखों से गिरे जो चंद कतरे,
जो समझ सको तो आंसु ना समझ सको तो पानी
~ * ~
सुननी नही है हमको किसी और की ज़ुबानी,
तेरे सुबह कह रही है तेरी रात की कहानी
~ * ~
मेरे खूने आरज़ू को वो समझ रहे है पानी,
उन्हें होश तक आया ये गुज़र गयी जवानी
~ * ~
ये इनायते गजब की ये बला की मेहरबानी,
मेरे खैरियत भी पूछी किसी और की जुबानी

~ * ~
"
काशी साईं परिवार" सभी सम्मानित भारत वंशियो को और इस ब्लॉग के सुधी पाठकों को होली वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं देता है॥

Tuesday, 1 February 2011

मेरा तिरंगा

मेरा तिरंगा
अगर आपका मन भी यही कहता है, तो तिरंगे के प्रति अपनी भावना Comment में लिखे।
Thanks a Lot
With Lots of Regards
Anshuman Dubey

Sunday, 9 January 2011

साईं चरणों में मेरा नमन

कबूल करना सलाम मेरा,
शिर्डी वाले हे साईं बाबा।
~ * ~
अनेक जन्मों से हूं बिछ्डा,
शिर्डी-वाले हे साईं बाबा।
कबूल करना सलाम मेरा,
शिर्डी वाले हे साईं बाबा।
मैं अकिन्चन दास हूं तेरा,
शिर्डी वाले हे साईं बाबा।
डगमग होती मेरी नाव,
मुझे बचा लो हे साईं बाबा।
मैं तुम्हारा तुम हमारे,
शिर्डी वाले हे साईं बाबा।
सारे जहां में तेरा नज़ारा,
शिर्डी वाले हे साईं बाबा।
संभालो बिगडी दशा हमारी,
शिर्डी वाले हे साईं बाबा।
~ * ~
कबूल करना सलाम मेरा,
शिर्डी वाले हे साईं बाबा।

Saturday, 8 January 2011

गुरु भक्ति की पराकाष्ठा :-

गुरु भक्ति की पराकाष्ठा तब पहुँचती है, जब एक मुरीद ( शिष्य ) अपने मुर्शिद ( गुरु ) के लिये पूरी तरह से समर्पित हो जाता है । उसको अपने गुरु के सिवाय कुछ नही दिखता, कुछ नहीं सूझता। एक टीस, एक इंतज़ार रहता है कि कब वो आ मिलेंगे ।
इन शब्दों के जरिये मैने एक मुरीद की मुरादों को व्यक्त करने की कोशिश की है :-

मेरी चाहतों के हाथो मैं मजबूर हूँ,
मेरे इलाही, मेरे मालिक, तेरे नशे मैं चूर हूँ ।
रंग दुनिया के इन आँखों में अब बसते नहीं,
दर्द हो या हो खुशी, दोनों से मसरूफ़ हूँ ।
रंज की गलियों में भटकता हूँ मैं दर-बदर,
नहीं पता है अभी तेरे दर से कितना दूर हूँ ।
शब जब तक टूटती है सहर के उजालों में,
यादें मेरी सिसकती है तेरे ही खयालो में ।
है तड़प जब यहाँ पर तो होगी वहाँ भी,
जानता हूँ तेरे लिये मैं भी मंजिले-मक़सूद हूँ ।

Monday, 3 January 2011

आर. सी.एम. स्पोर्ट्स अवार्ड (R.C.M. Sports Award)

श्री शंकर यादव "हवेली" मुख्य अतिथि श्री जी० पी० अग्रवाल (Add. Comm. Tarde Tax Department, Allahabad) से काशी साईं गौरव श्री का सम्मान प्राप्त करते हुए।

श्री अनुपम कुमार
R.C.M. Sports Award for Best Feilder के साथ

श्री अनुपम कुमार
R.C.M. Sports Award for Best Feilder के साथ


श्री अनुपम कुमार मुख्य अतिथि श्री जी० पी० अग्रवाल (Add. Comm. Tarde Tax Department, Allahabad) से R.C.M. Sports Award for Best Feilder का सम्मान प्राप्त करते हुए।

R.C.M. Sports Award for Best Bowler

R.C.M. Sports Award for Best Batsman

R.C.M. Sports Award for Best Feilder

चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...