Wednesday 1 July 2009

अब कुछ मरम बिचारा : रैदास

अब कुछ मरम बिचारा हो हरि।
आदि अंति औसांण राम बिन, कोई न करै
निरवारा हो हरि।। टेक।।
जल मैं पंक पंक अमृत जल, जलहि सुधा कै जैसैं।

ऐसैं करमि धरमि जीव बाँध्यौ, छूटै तुम्ह बिन कैसैं
हो हरि।।१।।
जप तप बिधि निषेद करुणांमैं, पाप पुनि दोऊ
माया।
अस मो हित मन गति विमुख धन, जनमि जनमि
डहकाया हो हरि।।२।।
ताड़ण, छेदण, त्रायण, खेदण, बहु बिधि करि ले
उपाई।
लूंण खड़ी संजोग बिनां, जैसैं कनक कलंक न
जाई।।३।।
भणैं रैदास कठिन कलि केवल, कहा उपाइ अब
कीजै।
भौ बूड़त भैभीत भगत जन, कर अवलंबन
दीजै।।४।।

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