तेरा, मैं दीदार-दीवाना।
घड़ी घड़ी तुझे देखा चाहूँ,
सुन साहेबा रहमाना॥
हुआ अलमस्त खबर नहिं तनकी,
पीया प्रेम-पियाला।
ठाढ़ होऊँ तो गिरगिर परता,
तेरे रँग मतवाला॥
खड़ा रहूँ दरबार तुम्हारे,
ज्यों घरका बंदाजादा।
नेकीकी कुलाह सिर दिये,
गले पैरहन साजा॥
तौजी और निमाज न जानूँ,
ना जानूँ धरि रोजा।
बाँग जिकर तबहीसे बिसरी,
जबसे यह दिल खोज॥
कह मलूक अब कजा न करिहौं,
दिलहीसों दिल लाया।
मक्का हज्ज हियेमें देखा,
पूरा मुरसिद पाया॥
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चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-
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