यह जो महंत बैठे हैं राधा के कुण्ड पर ।
अवतार बन कर गिरते हैं परियों के झुण्ड पर ।।
शिव के गले से पार्वती जी लिपट गयीं,
क्या ही बहार आज है ब्रह्मा के रुण्ड पर ।
राजीजी एक जोगी के चेले पे ग़श हैं आप,
आशिक़ हुए हैं वाह अजब लुण्ड मुण्ड पर ।
'इंशा' ने सुन के क़िस्सा-ए-फरहाद यूँ कहा,
करता है इश्क़ चोट तो ऐसे ही मुण्ड पर ।
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