Wednesday 2 September 2009

वृक्षन की मति ले रे मना (वृक्षों सा सवभाव) : संत कबीर

वृक्षन की मति ले रे मना
दृढ़ आसन मनसा नहीं डोलै
सुमिरन में चित दे रे मना

मेघ भिगावै पवन झकोरै
हर्ष शोक नहीं ले रे मना

उष्ण शीत सहे शिर ऊपर
पक्षिन को सुख दे रे मना

काटनहार से बैर भाव नहीं
सींचे स्नेह न है रे मना

जो कोई पत्थर फ़ेंक के मारे
ऊपर से फल दे रे मना

तन मन धन सब परमारथ में
लग्यो रहे नित नेह रे मना

कहे कबीर सुनो भाई साधो
सदगुरु दर्शन ले रे मना

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