Saturday 31 January 2009

मन लागो यार फकीरी में - कबीर

कबीर रेख सिंदूर उर काजल दिया न जाए

नैनं प्रीतम रूम रहा दूजा कहाँ समाये

प्रीत जो लगी घुल गई पीठ गई मन माहीं

रोम रोम पियु पियु कहे मुख की सिर्धा नाहीं

बुरा भला सब को सुन लीजो, कर गुजरान गरीबी में

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चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...