Thursday 25 June 2009

कबीर ने कहा है : भाग - 8

कबीर ने कहा है, कि.....
"कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार ।
तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न फार ॥"
भावार्थ -
कबीर कहते हैं - यदि हरिनाम पर अविरल प्रीति बनी रहे, तो उसके मुख से मोती-ही मोती झड़ेंगे, और इतने हीरे कि जिनकी गिनती नहीं । [ हरि भक्त का व्यवहार - बर्ताव सबके प्रति मधुर ही होता है- मन मधुर, वचन मधुर और कर्म मधुर ।]

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