Tuesday 2 June 2009

मैं और जिन्दगी

मैं दो कदम चलता और एक पल को रूकता मगर, इस एक पल में जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे चली जाती, मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रूकता मगर, जिन्दगी मुझसे फिर चार कदम आगे चली जाती, जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती, ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा, फिर एक दिन मुझको हँसता देख एक सितारे ने पुछा "तुम हारकर भी मुस्कुराते हो, क्या तुम्हे दुःख नहीं होता हार का?" तब मैंने कहा, मुझे पता है एक ऐसी सरहद आएगी जहां से जिन्दगी चार तो क्या एक कदम भी आगे नहीं जा पायेगी और तब जिन्दगी मेरा इंतज़ार करेगी और मैं तब भी अपनी रफ्तार से यूँ ही चलता-रुकता वहां पहुँचूंगा.........

एक पल रुक कर जिन्दगी की तरफ देख कर मुस्कुराऊँगा, बीते सफ़र को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाऊँगा, ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाऊंगा, मैं अपनी हार पर मुस्कुराया था और अपनी जीत पर भी मुस्कुराऊंगा और जिन्दगी अपनी जीत पर भी न मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी न मुस्कुरा पायेगी, बस तभी मैं जिन्दगी को जीना सिखाऊँगा l

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उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...