कबीर ने कहा है, कि.....
"करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड ।
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौंहीं आंधां रूंड ॥"
भावार्थ -
हमने देखा ऐसों को, जो मुख को ऊँचा करके जोर-जोर से कीर्तन करते हैं । जानते-समझते तो वे कुछ भी नहीं कि क्या तो सार है और क्या असार । उन्हें अन्धा कहा जाय, या कि बिना सिर का केवल रुण्ड ?
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चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-
उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...
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संतन जात ना पूछो निरगुनियाँ। साध ब्राहमन साध छत्तरी, साधै जाती बनियाँ। साधनमां छत्तीस कौम है, टेढी तोर पुछनियाँ। साधै नाऊ साधै धोबी, साधै जा...
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भगत देश का - शहीदेआजम भगत सिंह को समर्पित
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बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो। ऎ देश के सपूतो! मज़दूर और किसानो।। है रास्ता भी रौशन और सामने है मंज़िल। हिम्मत से काम लो तुम आसान हो...
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