Thursday 16 July 2009

गीता सार

कर कर्म अभागा मत बन तू.... स्वयं भाग्य विधाता अपना बन तू ॥
निष्काम कर्म तू करता जा.... सत्या अहिंसा के मार्ग चड़ता जा ॥
तत्व ज्ञान तुम्हे मैं देता हूँ.... तेरा मोह भंग कर देता हूँ ॥
अर्जुन तू चिंता त्याग ज़रा। मैं स्वयं देख तेरे पास खड़ा ॥
तुम्हे गीता ज्ञान सुनाता हूँ.... भक्त अपना तुझे बनता हूँ ॥
ब्रह्मा , श्रत्रिय , वैश्य क्षुद्र .... सब कर्मो से बन जाते हैं ॥
इन्ही वर्णौ से कोई कोई .... सन्यासी , कर्म योग अपनाते हैं ॥
अर्जुन ! कर्म टू सब कोई करता.... तुम्हे '' सुकर्म '' ज्ञान बताता हूँ ॥
घबरा मत अर्जुन तू भक्त मेरा .... भय भ्रम करूंगा दूर तेरा ॥
जो मेरे भक्त बन जाते हैं ....प्रिय भक्त सखा बन जाते हैं ॥
सत्य , रज, तम तेरे बन्धन हैं....गुण अवगुण सभी समाये हैं ॥
काम ,क्रोध ,लोभ,अंहकार, मोह ....पाँच चोर यही फसाये हैं ॥
अग्नि ,जल ,पृथ्वी की बात क्या ....तुझे विराट रूप दिखाता हूँ ॥
मैं स्वयं ही पैदा करता हूँ ....मैं स्वयं सभी को खाता हूँ ॥
तू अर्जुन किसी को क्या मारे .... सब पहले कर्मो के मारे हैं ॥
मेरा परम भक्त तू है अर्जुन .... सब भेद तुम्हे समझा ही दिया ॥
अब मर्जी तेरी है , धनंजय .... विराट रूप तुमने देखा है॥
तन मानव का जो है पाया .... शुभ कर्मो का लेखा जोखा है॥
भय्क्रांत से अर्जुन मूक हुए .... कुछ बोलन मुँह से निकल रहे॥
हे कृष्णा .... तुम्ही टू सब कुछ हो मेरे अहम भ्रम सब निकल गए॥
प्रभु तेरी शरण मी आन खड़ा .... जो कहो वही मैं कर पाऊँ॥
इस युद्ध में धर्म की जीत करो .... मैं भक्त तेरा भी तर जाऊं॥
बस अर्जुन जो मैं चाहता था .... तुम्हे गीता ज्ञान सिखाना था॥
सत्य धर्म की जीत करनी थी .... सत्य , अहिंसा का मार्ग दिखाना था॥
मेरा स्मरण कभी भी कर के देखो .... मैं झट प्रगत हो जाता हूँ॥
सत्य धर्म की रक्षा के खातिर .... युग युग अवतार ले आता हूँ॥
वेदों का सार यह ''गीता'' है .... सब ग्रंथो का सार यह वेद ही है॥
वो' ही धन्य पुरूष है जो गीता ज्ञान ले जीते हैं॥
श्री कृष्ण चरण की रज ले कर । बन अर्जुन की तरह नित पीते हैं॥

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