Sunday, 16 August 2009

गुरु नानकदेव के पद : भाग - 5

सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने लोगों तक अपनी बात ठीक ढंग से पहुंचाने के लिए हास्य-व्यंग्य, विनम्र अनुरोध, यहाँ तक कि कभी कभी डांट-फटकार का भी सहारा लिया जैसा कि उपरोक्त घटनाओं से सपष्ट होता है। पन्द्रहवीं सदी का मध्ययुगीन भारतीय समाज दो विभिन्न परस्पर विरोधी धार्मिकगुटों में बंटा हुआ था; हिन्दू एवं इस्लाम। इन दोनों में कोई समानता न थी। दोनों के अलग-अलग धार्मिक विश्वास तथा विचारधाराएं थीं, ऐसे वातावरण में गुरु नानक देव की धारणा थी कि कोई हिन्दू अथवा मुसलमान नहीं है. सभी जीव भगवान की सृष्टि का परिणाम हैं। सभी मतभेदों का केंद्रबिंदु भगवान को पाने का रास्ता था। भगवान को पाने के मार्ग में उत्पन्न मतभेदों के होने पर उन्होंने घोषणा की कि ईश्वर एक है परन्तु उस तक पहुँचने के मार्ग अनेक हैं।

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चंद्रशेखर आज़ाद के अंतिम संस्कार के बारे में जानने के लिए उनके बनारस के रिश्तेदार श्री शिवविनायक मिश्रा द्वारा दिया गया वर्णन पढ़ना समीचीन होगा:-

उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...