Friday, 14 August 2009

हे प्रभु जागिए अपने भारत को सम्हालिए।

सद्गुरु केवल एक व्यक्ति ही नहीं है। सद्गुरु आदर्श है। चिर सुंदर, चिर सत्य है। सद्गुरु ही सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् है। सद्गुरु ही राम है, रहीम, कृष्ण, करीम है। सद्गुरु प्रभु की परमोच्च अवस्था है। नैतिक बल बढ़ाने में सद्गुरु से बड़ा कोई सहारा नहीं मिल सकता। इसीलिए बाबा निःस्वार्थ त्याग के गरिमामय सिंहासन पर शिर्डी में सुशोभित हैं। निजी आवश्यकताओं के मामले में बाबा शंकर, महावीर और बुद्ध से भी दस कदम आगे थे। वैराग्य का ऐसा ज्वलंत रूप और कहीं देखने को नहीं मिलेगा। बाबा की निजी आवश्यकताएं शून्य थीं। साई ऋषि संस्कृति के सर्वोच्च शिखर पर बैठे हैं। हम भारतीय अपनी संस्कृति पर केवल अभिमान ही करते हैं उसे जीते नहीं हैं। इसीलिए राष्ट्र घोर दुर्दशा से गुजर रहा है। आज देश के नेताओं से समर्पण चाहिए, भाषण नहीं। अगर भारत को अपने बीते स्वर्ण काल में वापस जाना है तो हर आदमी को संत संस्कृति से जुड़ना होगा। अपने पुराने चिरपरिचित जीवनमूल्यों को फिर से जीना होगा।
भारत को एक मिली-जुली सरकार से भी ज्यादा आवश्यकता है एक मिले-जुले अवतार की, जिसमें साई का आध्यात्म हो जो सर्व धर्मसमन्वय की महानतम् विभूति थे, विवेकानंद का त्याग, ओज, देशभक्ति व जन संपर्क हो और महात्मा गांधी की कर्तव्य निष्ठा और जीवन शैली हो और सरदार पटेल का दुर्दम्य अनुशासित शासन हो, तब ही राष्ट्र फिर से बनता है।

हे प्रभु जागिए अपने भारत को सम्हालिए।

राजनीति नहीं किंतु देशभक्ति को राष्ट्र निर्माण का आधार बनाना होगा और हमारी चिरंतन गुरु शिष्य परंपरा को फिर से नया होश व जोश भरकर देशभर में हर जगह ले जाना होगा। इस कार्य में साई भक्तों की अहम भूमिका है। सर्वधर्मसमन्वय के प्रतिभाशाली दूत बनकर काम करें और देशभक्ति व अध्यात्म के आधार पर नये राष्ट्र के निर्माण के लिए अपना योगदान दें।

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उनके शब्दों में—“आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद होने के बाद इलाहाबाद के गांधी आश्रम के एक स...