Sunday 2 August 2009

बुरा ज़माना, बुरा ज़माना : नामवर सिंह

बुरा ज़माना, बुरा ज़माना, बुरा ज़माना

लेकिन मुझे ज़माने से कुछ भी तो शिकवा

नहीं, नहीं है दुख कि क्यों हुआ मेरा आना

ऎसे युग में जिसमें ऎसी ही बही हवा

गंध हो गई मानव की मानव को दुस्सह।

शिकवा मुझ को है ज़रूर लेकिन वह तुम से--

तुम से जो मनुष्य होकर भी गुम-सुम से

पड़े कोसते हो बस अपने युग को रह-रह

कोसेगा तुम को अतीत, कोसेगा भावी

वर्तमान के मेधा! बड़े भाग से तुम को

मानव जय का अंतिम युद्ध मिला है चमको

ओ सहस्र जन-पद-निर्मित चिर पथ के दावी!

तोड़ अद्रि का वक्ष क्षुद्र तृण ने ललकारा

बद्ध गर्भ के अर्भक ने है तुम्हें पुकारा।


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